कारगिल के हीरो: रामसहाय बाजिया

बड़नगर पावटा में जन्मे रामसहाय बाजिया बचपन से ही लक्ष्य का पीछा करते थे और धुन के पक्के थे। दौड में अपना औऱ देश का नाम रोशन करना उनका ध्येय था। लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था। 27 जनवरी 1997 में सेना की 2 राजरिफ में भर्ती हुऐ। कारगिल युद्ध के दौरान द्रास सेक्टर में तोलोलिंग पहाड़ी पर माइन ब्लास्ट में बायां पैर चला गया। 2000 में रिटायरमेंट पर घर वापस आ गए। तब से लेकर आज तक निरंतर सैनिकों एवं उनके परिजनों एवं समाज के उत्थान के लिए कार्य कर रहें हैं। सैनिकों के परिवारों के दुख दर्द को समझते हैं इसीलिए उनकी हरसंभव मदद करते हैं। रामसहाय बाजिया आज भी देश की दुश्मनों से हिफाजत के लिए सरहदों पर लड़ने के लिए तैयार हैं।

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बाजिया ने गत गहलोत सरकार में राज्य स्तरीय सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष पद पर रहते हुए प्रत्येक जिले में जाकर पूर्व सैनिकों, वीरांगनाओं एवं शहीद परिवारों के बीच जाकर उनकी परेशानियों को नजदीक से सुना एवं जिला सैनिक कल्याण अधिकारी को समस्याओं के निस्तारण के निर्देश दिए। बाजिया की पहल पर ही प्रत्येक जिले में जिला कलक्टर ने महीने में एक दिन सिर्फ सैनिकों की समस्याओं को सुनने एवं उनके त्वरित निस्तारण करने के लिए मुकर्रर किया गया।

पुलवामा आतंकी हमले पर बाजिया कहते हैं कि यह अपने आप में कायरता का प्रतीक था। भारतीय सेना के जांबाजों की नसों में देशभक्ति रक्त बन कर बहती है, इसीलिए आतंकवादियों में इतनी हिम्मत नही है कि वे देश के रणबांकुरों से रण में सीधा मोर्चा ले सकें। उन्होंने कहा कि विंग कमांडर अभिनंदन प्रत्येक देशवासी के लिए मिसाल एवं प्रेरणा स्रोत हैं। देश को ऐसे जांबाजों की जरूरत है। आज हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा है औऱ हमें इस सच्चे हीरो पर फक्र है। बाजिया आज भी सैनिकों एवं उनके परिजनों के लिए कल्याणकारी कार्यो में लगे रहते हैं।

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