भारत एक विभिन्नताओं वाला देश है। अनेकता में एकता ही इसकी पहचान है। यहां शादी, तलाक़, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं। हालांकि, देश की आज़ादी के बाद से समान नागरिक संहिता या यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) की मांग चलती रही है। इसके तहत इकलौता क़ानून होगा जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह नहीं की जाएगी। यहां तक कि संविधान कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे क़ानून मुहैया कराने के ‘प्रयास’ करने चाहिए।
लेकिन एक समान क़ानून की आलोचना देश का हिंदू बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्पसंख्यक दोनों समाज करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में कहें तो यह एक ‘डेड लेटर’ है। बीजेपी शासित उत्तराखंड की विधानसभा ने राज्य में यूसीसी लागू करने के लिए लाए गए विधेयक को पारित कर दिया है। राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन जाएगा। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश और राजस्थान UCC पर चर्चा कर रहे हैं।
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना, कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करना और UCC को लागू करना बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहे हैं। अयोध्या में मंदिर का वादा पूरा हुआ है और हाल में प्रधानमंत्री जी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जा चुकी है। कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर दी गई है और CAA लागू हो गया है तो अब चर्चा UCC पर है। हिंदूवादी संगठन समान नागरिक संहिता की मांग मुस्लिम पर्सनल लॉ के कथित ‘पिछड़े’ क़ानूनों का हवाला देकर उठाते रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तीन तलाक़ वैध था जिसके तहत मुसलमान तुरंत तलाक़ दे सकते थे लेकिन मोदी सरकार ने साल 2019 में इसे आपराधिक बना दिया।
बीजेपी का चुनावी घोषणा पत्र कहता है कि ‘जब तक भारत समान नागरिक संहिता नहीं अपना लेता है तब तक लैंगिक समानता नहीं हो सकती है।’ भारत में 90% जोड़े शादी के बाद पति के परिवार के साथ रहते हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘असलियत बहुत ज़्यादा जटिल है.’ दूसरे शब्दों में कहें तो UCC बनाने के विचार ने उस पिटारे को खोल दिया है जिसके देश के हिंदू बहुमत के लिए भी अनपेक्षित नतीजे होंगे जिसका प्रतिनिधित्व करने का दावा बीजेपी करती है। “UCC मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं की सामाजिक ज़िंदगी को प्रभावित करेगी.”
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