सिंधु जल संधि का अंत पाकिस्तान के लिए एक धीमा लेकिन निश्चित विनाश लेकर आएगा। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह संधि हुई थी, जिसके तहत भारत ने पाकिस्तान को 80% से अधिक पानी दे दिया था। भारत ने केवल तीन पूर्वी नदियाँ — रावी, व्यास और सतलुज — अपने उपयोग के लिए रखीं, जबकि सिंधु, चिनाब और झेलम का अधिकांश पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ा गया। आज तक भारत ने इस संधि का पूरी ईमानदारी से पालन किया, जबकि पाकिस्तान ने हर मोर्चे पर भारत को घाव देने की कोशिश की। लेकिन अब समय बदल चुका है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का आधे से ज़्यादा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। कपास, गेहूं, गन्ना और चावल — ये सारी फसलें पानी पर टिकी हैं। अगर भारत सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी पर अपने अधिकार का पूरी तरह से उपयोग करना शुरू कर दे, तो पाकिस्तान की खेती बर्बाद हो जाएगी। भारत चाहे तो बरसात के समय गेट खोलकर विनाशकारी बाढ़ पाकिस्तान में छोड़ सकता है, और सूखे के समय बांधों के गेट बंद कर पाकिस्तान को पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसा सकता है। पाकिस्तान पहले ही हर साल भयानक बाढ़ों का सामना कर रहा है। 2022 की बाढ़ में पाकिस्तान की 30% फसलें तबाह हो गई थीं और 3 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हुए थे। पाकिस्तान की GDP का लगभग 2% सिर्फ उस एक बाढ़ में मिट्टी में मिल गया था। अगर भारत इस दबाव को रणनीतिक तरीके से बढ़ाए, तो पाकिस्तान के लिए हर साल का मानसून एक विनाशलीला बन जाएगा।
भारत ने अपनी तरफ सिंधु बेसिन में बड़ी परियोजनाएँ बनानी शुरू कर दी हैं। किशनगंगा प्रोजेक्ट, रटल प्रोजेक्ट, पाकल डुल डैम — ये सब अब गति पकड़ रहे हैं। इनसे भारत को बिजली भी मिलेगी और पानी पर रणनीतिक नियंत्रण भी। पाकिस्तान ने पहले भी इन परियोजनाओं पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध किया, लेकिन हर बार हार का मुंह देखा। अब जब भारत संधि को लेकर कानूनी पुनर्विचार कर रहा है, तो पाकिस्तान की घबराहट चरम पर है।
पाकिस्तान की आंतरिक हालत वैसे ही नाजुक है। महंगाई आसमान छू रही है, IMF ने नए ऋण देने से हाथ खींच लिया है, डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया लगातार गिर रहा है, और राजनीतिक अस्थिरता ने देश को हिलाकर रख दिया है। इन परिस्थितियों में अगर भारत ने पानी का प्रहार शुरू किया, तो न खेतों में हरियाली बचेगी, न कारखानों में काम, न ही शहरों में पीने का पानी।
युद्ध में दुश्मन को हराने के लिए हमेशा गोलियों और बमों की ज़रूरत नहीं होती। कभी-कभी दुश्मन के जीवन का आधार काट देना सबसे कारगर हथियार बन जाता है। पाकिस्तान की नसों में बहता पानी ही उसकी अर्थव्यवस्था का खून है। अगर वह खून सूखने लगे, तो बिना एक भी गोली चलाए दुश्मन घुटनों पर आ सकता है।
भारत अब बदल चुका है। अब न सीमाओं पर चुप्पी है, न समझौतों की राजनीति। अब चोट का जवाब चोट से दिया जाएगा, और वार वही होगा जो दुश्मन की आत्मा को झकझोर दे। सिंधु जल संधि के अंत की आहट से ही पाकिस्तान में बौखलाहट मच चुकी है। आने वाले समय में भारत रणनीतिक तरीके से अपने जल संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर पाकिस्तान को उसी की साजिशों की कीमत चुकाने पर मजबूर करेगा।
यह लड़ाई बंदूक से ही नहीं, बूंद-बूंद से जीती जाएगी। और जब खेतों में दरारें पड़ेंगी, जब नदियाँ रेत बन जाएँगी, जब शहरों में पानी के लिए हाहाकार मचेगा — तब पाकिस्तान को असली हार का एहसास होगा। दुश्मन को हराने का सबसे सुंदर तरीका है उसे उसके ही बोझ तले कुचल देना। और सिंधु का पानी अब भारत के लिए वही अस्त्र बन चुका है।