देश की सुरक्षा को लेकर माहौल संवेदनशील है। सीमाओं पर तनाव है, और ऐसे वक्त में सभी राजनीतिक विचारधाराएं—चाहे असदुद्दीन ओवैसी हों या उमर अब्दुल्ला—एक सुर में राष्ट्रीय एकता की बात कर रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस द्वारा जारी किया गया एक पोस्टर चर्चा में आ गया।
इस पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए “modi missing hai” लिखा गया, लेकिन उसी तस्वीर में जो इंसान दिखाया गया है उसका सिर नहीं है और इसीलिए डिज़ाइन के कुछ हिस्से, सोशल मीडिया पर एक खास सन्दर्भ में देखे गए, जिसे कई लोगों ने ‘सर तन से जुदा’ जैसी कट्टरपंथी सोच से जोड़ के देखा।
और मोदी गुम है कहाँ? हर रोज मीटिंग हो रही है, प्रधानमंत्री मोदी जनता के साथ सीधे संवाद कर रहे हैं। सेना को सीधे कार्रवाई करने के आदेश दिए जा चुके हैं। अब क्या कांग्रेस ये चाहती है कि सारे प्लान खुले में पेपर भी बताए जाएं।
अभी दो दिन पहले ही आतंकवादियों ने ऐसा ही सिर कटा पोस्टर जारी किया था जिसको यहां पूरा दिखाया भी नहीं जा सकता। क्या इतना सा भी ज्ञान नहीं है कॉंग्रेस की सोशल मीडिया टीम में?
हालांकि कांग्रेस का कहना है कि उनका मकसद प्रधानमंत्री पर तंज कसना था, न कि किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा देना। विवाद बढ़ने पर कांग्रेस ने बिना कोई सार्वजनिक सफाई दिए पोस्टर डिलीट कर दिया। यही चुप्पी अब सवालों के घेरे में है।
अगर पार्टी का इरादा गलत नहीं था, तो उसे हटाया क्यों गया? और अगर शब्द या डिज़ाइन के चुनाव में गलती हुई, तो उसकी ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ली गई?
राजनीतिक आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन विचार और विमर्श की मर्यादा बनाए रखना भी ज़रूरी है, खासतौर पर तब, जब देश आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों से जूझ रहा हो। ऐसे समय में संदिग्ध प्रतीकों और शब्दों का चयन, चाहे अनजाने में ही क्यों न हो, राजनीतिक सूझबूझ पर सवाल खड़े करता है।
संवेदनशील समय में, शब्द केवल शब्द नहीं होते, वे संदेश बन जाते हैं। और यही बात हर दल को समझनी होगी।