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  • बंटेंगे तो कटेंगे: भाषाई टकराव और भारत की एकता का इम्तिहान

    बंटेंगे तो कटेंगे: भाषाई टकराव और भारत की एकता का इम्तिहान

    “भारत एक राष्ट्र है, और भाषाएँ उसकी आत्मा।”

    लेकिन क्या हो जब वही आत्मा खंड-खंड हो रही हो? जब पुल बनाने की जगह भाषा को दीवार बना दिया जाए?

    भारत की भाषिक विविधता सदियों पुरानी है। हमारे देश में 22 अनुसूचित भाषाएँ और 19,500 से अधिक बोली-बाषाएं हैं। जब 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषावार राज्यों का गठन सुझाया, तो उसका उद्देश्य था कि हर भाषा को उसकी सांस्कृतिक जमीन मिले, उसकी पहचान मिले। लेकिन उस वक़्त भी यह चेतावनी दी गई थी, कि कहीं यह विभाजन की जड़ न बन जाए।

    वक़्त ने साबित किया कि डर गलत नहीं था।

    आज एक बार फिर हम उसी मोड़ पर खड़े हैं। भाषा की बहस अब बहस नहीं रही, संघर्ष बन गई है।

    पिछले कुछ महीनों में दक्षिण भारत के कई राज्यों में यह देखा गया कि हिंदी भाषी कर्मचारियों को केवल इसलिए धमकाया गया, क्योंकि वे स्थानीय भाषा नहीं बोलते थे। हाल ही में कर्नाटक में SBI की महिला कर्मचारी को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया क्योंकि उसने कन्नड़ नहीं बोली, वीडियो वायरल हुआ, आक्रोश फैला, और फिर वही दोहराव: “यह राज्य की भाषा है, इसे जानो या जाओ।”

    इसमें दोष किसका है? उस महिला का? कंपनी का? या उस मानसिकता का जो भाषा को पहचान से आगे, अधिकार का हथियार बना देती है?

    मैं उत्तर भारत से हूँ, राजस्थान में रहता हूँ, हिंदी मेरी मातृभाषा है, पर मैंने राजस्थानी सीखी, अंग्रेज़ी पढ़ी, और हर उस व्यक्ति से संवाद करने की कोशिश की जो मेरी भाषा नहीं जानता। क्या यह ही नहीं है भारतीयता की परिभाषा?

    हिंदी को लेकर जो गुस्सा है, वह पूरी तरह निराधार नहीं है। आज़ादी के बाद जब संविधान सभा में राष्ट्रभाषा का सवाल उठा, तब हिंदी के पक्ष में कई आवाज़ें थीं। लेकिन कुछ राज्यों ने आशंका जताई, क्या यह बहुमत की भाषा, अल्पसंख्यकों पर थोप दी जाएगी? समझदारी से निर्णय लिया गया कि हिंदी राजभाषा होगी, लेकिन अंग्रेज़ी का प्रयोग भी चलता रहेगा।

    यह द्विभाषिक व्यवस्था एक समझौता थी, भारत की विविध आत्माओं के बीच एक सहमति। लेकिन आज जब स्थानीय राजनीति इस सहमति को तोड़ने लगे, जब भाषा सियासत का औजार बन जाए, तब एक राष्ट्र के रूप में हमें रुक कर सोचना होगा।

    क्या भाषा को लेकर डर पैदा करना सही है?
    क्या कंपनियों को मजबूर किया जाना चाहिए कि वे स्थानीय भाषा न जानने वालों को बाहर का रास्ता दिखाएँ? क्या बहुराष्ट्रीयता और वैश्विक संवाद के इस दौर में यह व्यवहारिक है?

    हमें यह स्वीकार करना होगा कि हिंदी आज भी करोड़ों भारतीयों की संपर्क भाषा है। उत्तर से लेकर मध्य भारत तक, हिंदी रोज़मर्रा की बातचीत, व्यापार, प्रशासन और मीडिया की रीढ़ बनी हुई है। दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी समझने वालों की संख्या भी बढ़ी है, यह किसी योजना का नतीजा नहीं, संवाद की ज़रूरत का परिणाम है।

    तो क्या हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाया जाना चाहिए? शायद हाँ। लेकिन जबरन नहीं, संवाद और सहमति से।

    क्योंकि कोई भी भाषा, चाहे वह तमिल हो, कन्नड़ हो या हिंदी, जब उसे डराने या नीचा दिखाने का औज़ार बनाया जाए, वह अपना मूल उद्देश्य खो देती है।

    आगे का रास्ता क्या हो?

    1. राष्ट्रीय भाषाई आचार संहिता बनाई जाए: जिससे हर संस्थान, चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक, यह स्पष्ट कर सके कि कार्यस्थल पर कौन सी भाषाएँ स्वीकार्य हैं और कैसे संवाद को समावेशी बनाया जाए।
    2. भाषा प्रशिक्षण अनिवार्य नहीं, प्रोत्साहित किया जाए: कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को स्थानीय भाषा सीखने के लिए संसाधन दें, लेकिन उसे शर्त न बनाएं।
    3. राज्य सरकारें और केंद्र मिलकर एक पुलभाषा चुनने पर विचार करें: हिंदी और अंग्रेज़ी के मिश्रण से एक ऐसा संवाद ढांचा बने, जिसमें स्थानीय भाषा को पूर्ण सम्मान मिले, और संप्रेषण बाधित न हो।

    और सबसे अहम बात, वायरल वीडियो, धमकियाँ, अपमानजनक व्यवहार, इन सब पर कानून की सख्ती ज़रूरी है। जो लोग इस मुद्दे को हिंसा और विभाजन के ज़रिए हवा दे रहे हैं, वे भारत की असली भावना के खिलाफ हैं।

    भाषा हमारी पहचान है, पर पहचान को दीवार नहीं बनाना चाहिए।

    हम हिंदी को भी समझें, राजस्थानी को भी अपनाएँ, कन्नड़ को भी सुनें, तमिल को भी सीखें, तभी हम एक राष्ट्र रह पाएँगे। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि “हर भारतीय एक अन्य राज्य की भाषा भी सीखने का प्रयास करे”। यही तो एकता और अखंडता का सार है। क्योंकि अगर हम भाषा के नाम पर बंटेंगे, तो सिर्फ़ भाषाएँ नहीं, हम अपने भारत को खो देंगे।

  • 7 मई 2025 की देशव्यापी मॉक ड्रिल: भारत-पाक तनाव के बीच सुरक्षा तैयारियों की परीक्षा

    7 मई 2025 की देशव्यापी मॉक ड्रिल: भारत-पाक तनाव के बीच सुरक्षा तैयारियों की परीक्षा

    जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए क्रूर आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर हिंदू पर्यटक थे। इसके जवाब में भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए 7 मई 2025 को पूरे देश में एक व्यापक नागरिक सुरक्षा मॉक ड्रिल आयोजित करने की घोषणा की है।

    यह अभ्यास 259 जिलों में एक साथ होगा, जिसमें हवाई हमले की चेतावनी, ब्लैकआउट अभ्यास, और आपातकालीन प्रतिक्रिया की ट्रेनिंग शामिल होगी। इस तरह का अभ्यास 1971 युद्ध के बाद पहली बार हो रहा है, और इसका उद्देश्य नागरिकों को युद्ध जैसी स्थिति के लिए मानसिक और व्यावहारिक रूप से तैयार करना है।

    मॉक ड्रिल का ढांचा

    गृह मंत्रालय के अनुसार, यह मॉक ड्रिल तीन श्रेणियों में आयोजित होगी:

    • श्रेणी ‘ए’: उच्च जोखिम वाले क्षेत्र (जैसे दिल्ली, मुंबई, जम्मू-कश्मीर)
    • श्रेणी ‘बी’: मध्यम जोखिम वाले क्षेत्र
    • श्रेणी ‘सी’: प्रतीकात्मक अभ्यास वाले क्षेत्र

    प्रमुख शहरों में सायरन बजाकर हवाई हमले की चेतावनी दी जाएगी। रात के समय ब्लैकआउट अभ्यास होगा ताकि नागरिकों को बिजली कटौती की स्थिति में व्यवहार करने का अनुभव मिल सके। स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों में नागरिकों को प्राथमिक चिकित्सा, सुरक्षित स्थान पर जाने, और बचाव के उपायों की ट्रेनिंग दी जाएगी।

    राज्यों की तैयारियां

    • उत्तर प्रदेश: 19 जिलों में ड्रिल होगी। लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज में विशेष जागरूकता सत्र होंगे।
    • दिल्ली: मेट्रो स्टेशनों, मॉल्स और सार्वजनिक स्थलों पर ड्रिल होगी। पुलिस और सिविल डिफेंस तैनात।
    • महाराष्ट्र: मुंबई, पुणे और नासिक में मॉक ड्रिल की व्यापक योजना। विश्वविद्यालयों में परीक्षा कार्यक्रम यथावत।
    • कर्नाटक और तेलंगाना: बेंगलुरु और हैदराबाद में प्रमुख अभ्यास।
    • पूर्वोत्तर: मणिपुर, असम में सीमित दायरे में अभ्यास।

    सैन्य और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

    भारतीय वायुसेना 7-8 मई को सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़े स्तर पर अभ्यास करेगी। पाकिस्तान ने भी अपनी सेनाओं को हाई अलर्ट पर रखा है, जिससे तनाव की स्थिति और संवेदनशील हो गई है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस और चीन ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है।

    नागरिकों से अपील

    सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह अभ्यास केवल सुरक्षा तैयारियों की जांच और प्रशिक्षण के उद्देश्य से है, घबराने की जरूरत नहीं है। लोगों से अफवाहों से दूर रहने और केवल सरकारी सूचनाओं पर भरोसा करने को कहा गया है।

    7 मई की मॉक ड्रिल भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी, न केवल सुरक्षा बलों के लिए, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी। यह अभ्यास बताता है कि देश किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार है, और नागरिक जागरूकता इसका अहम हिस्सा है।

  • पाकिस्तान और चीन से निपटना है तो पड़ोसी देशों से संबंध मजबूत करने होंगे

    पाकिस्तान और चीन से निपटना है तो पड़ोसी देशों से संबंध मजबूत करने होंगे

    पाकिस्तान खुद बर्बाद हो रहा है, बलूचिस्तान और सिंध अलग होना चाहते हैं, उसकी पूरी अर्थव्यवस्था सेना और ब्याज चुकाने में खत्म हो रही है। ऐसे में जनता को एकजुट रखने के लिए उसे एक दुश्मन चाहिए, और वह दुश्मन है भारत।

    चीन ने भी अपने किसी पड़ोसी को नहीं छोड़ा। ताइवान को वो हथियाना चाहता है, रूस से भी।सीमा विवाद है, समुद्री विवाद कई देशों से है, और भूटान की कुछ ज़मीन तक वह हड़प चुका है।

    पाकिस्तान और चीन का साझा दुश्मन भारत है, इसलिए वे एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। अगर हम पाकिस्तान से युद्ध कर भी लें, तो चीन की ओर से मोर्चा खुलने का डर हमेशा बना रहेगा।

    इसलिए हमें अपने अन्य पड़ोसियों, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, अफगानिस्तान, मालदीव और भूटान, से संबंध सुधारने और उन्हें बेहद मजबूत करने की ज़रूरत है।

    बांग्लादेश के साथ सीमा को मज़बूत कर घुसपैठ रोकनी चाहिए। लेकिन जब हम उन्हें नीचा दिखाते हैं या शेख हसीना जैसी नेता का समर्थन करते हैं, जिनके राज में विपक्षियों को जेल में डाला या मार दिया गया, तो वहां भारत को समर्थन कैसे मिलेगा? हमें बांग्लादेश का व्यापारिक साझेदार बनना चाहिए, उसे ऋण देना चाहिए और निवेश बढ़ाना चाहिए ताकि वह भारत पर निर्भर हो सके। वहां से आने वाले गैर कानूनी प्रवासियों को एक द्विपक्षीय सरकारी नीति के तहत शांति और सम्मान से नियमित रुप से वापस भेजना चाहिए।।

    नेपाल में एक बार फिर राजशाही की मांग उठ रही है। हमें वहां की जनता की भावनाओं के अनुसार पक्ष लेना चाहिए। नेपाली युवाओं की सेना में भर्ती और व्यापार को दोगुना करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों को नज़रअंदाज़ कर उन्हें अपना बनाना चाहिए। नेपाल आधिकारिक रूप से एकमात्र हिन्दू और हिंदी राष्ट्र हैं। हमें इसके लिए उनका कंधा थपथपाते रहना चाहिए।

    श्रीलंका में राजीव गांधी ने तमिलों की परवाह न करते हुए वहां की सरकार का समर्थन किया, जिससे एलटीटीई ने उनकी हत्या कर दी। आज तक श्रीलंका में दोनों तरफ से कुछ हद तक ये बात ज़िंदा है। हमें वहां की जनता का दिल जीतना होगा और तमिलों के अधिकारों की रक्षा भी करनी होगी। व्यापार और निवेश यहां भी हमारे हित में रहेगा।

    अफगानिस्तान के नागरिक भारत से प्रेम करते हैं। हमें किसी भी हाल में समुद्र के रास्ते वहां व्यापार बनाए रखना चाहिए। वहां सड़क, बांध, अस्पताल और सहायता जारी रखनी चाहिए और वहां के नागरिकों को भारत में शिक्षित करना चाहिए।

    भूटान से हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं। हमें इन्हें संजो कर रखना होगा।

    म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ माहौल है। वहां के बौद्ध हमारा समर्थन चाहते हैं। हमें उनके साथ सीमा सुरक्षा, हथियारों और ड्रग्स को रोकने की साझेदारी करनी चाहिए, सरकार को पूर्ण समर्थन देना चाहिए और रोहिंग्या को शरण न देकर उन्हें चिन्हित कर वापस भेजना चाहिए।

    मालदीव में भारत विरोधी सुर उठ रहे हैं। ऐसे नेता और पार्टियों को हमें ‘साम, दाम, दंड, भेद’ से साधना होगा। मालदीव अभी भी भारत पर निर्भर है, और हमें इस निर्भरता को और मज़बूत करना चाहिए। फिर जनता के समर्थन से एक बेहतर सरकार को बढ़ावा देना होगा।

    हर जगह व्यापार, सहायता, सेना और शिक्षा का आदान-प्रदान बेहद महत्वपूर्ण है। साफ शब्दों में कहें तो, किसी को आप पर इतना निर्भर बना दीजिए कि वह आपके बिना न रह सके। तभी हम अपनी चारों सीमाएं मज़बूत कर पाएंगे।

    चीन का अमेरिका से व्यापार लगभग ठप हो गया है, पाकिस्तान में उसका बड़ा निवेश है, भारत में वह 150 अरब डॉलर से ज़्यादा का सामान बेचता है, वह कभी भारत-पाक का बड़ा युद्ध नहीं चाहेगा।

    हमें ज़मीनी हकीकत को समझकर हर दिन, हर हफ्ते, हर साल हर दिशा में काम करना होगा और भारत विरोधी ताकतों को सिर उठाने से पहले ही कुचल देना होगा।