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  • धनगर आरक्षण पर महाराष्ट्र के उपाध्यक्ष नरहरी जिरवाल का नाटकीय विरोध प्रदर्शन। छत से कूदे।

    धनगर आरक्षण पर महाराष्ट्र के उपाध्यक्ष नरहरी जिरवाल का नाटकीय विरोध प्रदर्शन। छत से कूदे।

    4 अक्टूबर 2024 को, महाराष्ट्र के उपाध्यक्ष नरहरी जिरवाल और कई अन्य आदिवासी विधायकों ने मुंबई के मंत्रालय, राज्य सचिवालय की तीसरी मंजिल से सुरक्षा जाल पर छलांग लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षण श्रेणी में शामिल करने के खिलाफ चल रहे आंदोलन का हिस्सा था।

    धनगर समुदाय, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र के पश्चिमी हिस्सों और मराठवाड़ा क्षेत्र के चरवाहे हैं, वर्षों से एसटी श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है। समुदाय का तर्क है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति ऐसी है जो इस वर्गीकरण की हकदार है, जिससे उन्हें शिक्षा और रोजगार में विभिन्न सरकारी लाभ और आरक्षण प्राप्त होंगे।

    इस विरोध का नेतृत्व एनसीपी के अजीत पवार गुट से जुड़े नरहरी जिरवाल ने किया, जिनके साथ एनसीपी के विधायक किरण लहामटे और भाजपा के आदिवासी सांसद हेमंत सवरा भी थे। इन नेताओं ने 2018 में मंत्रालय में आत्महत्या के प्रयासों के बाद लगाए गए सुरक्षा जाल पर छलांग लगाई।यह विरोध महाराष्ट्र सरकार की ओर से धनगर समुदाय को एसटी आरक्षण सूची से बाहर करने की मांग पर कोई कार्रवाई न होने के विरोध में था। धनगर समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने का मुद्दा लंबे समय से विवादित रहा है, आदिवासी नेताओं का कहना है कि इससे मौजूदा एसटी समुदायों के लिए मिलने वाले लाभों में कमी आएगी।

    इस घटना ने बड़ी सुर्खियां बटोरीं, और विरोध का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया। पुलिस ने जल्द ही हस्तक्षेप किया और विरोध कर रहे नेताओं को सुरक्षा जाल से हटाया। यह विरोध महाराष्ट्र में आरक्षण अधिकारों के लिए चल रहे संघर्ष और विभिन्न समुदायों के बीच सरकारी लाभों तक पहुंच को लेकर गहरी बैठी हुई तनावपूर्ण स्थिति को उजागर करता है। राज्य सरकार पर अब धनगर समुदाय और मौजूदा एसटी समुदायों की चिंताओं को संतुलित करने के लिए समाधान निकालने का दबाव बढ़ गया है।

  • आदिवासी महिलाएं मुफ्त साड़ी नहीं काम चाहती हैं

    आदिवासी महिलाएं मुफ्त साड़ी नहीं काम चाहती हैं

    महाराष्ट्र के पालघर में एक आदिवासी गांव है वसंतवाड़ी। वसंतवाड़ी में करीब ढाई सौ परिवार रहते हैं। महानगर मुम्बई से मात्र 120 किलोमीटर दूर इस गांव झौंपड़ियां और टूटे घर आज भी आपको दिखेंगे। 16 मार्च को आदर्श आचार संहिता लागू होने से कुछ दिन पहले ही कई गांवों के लोगों को सरकारी राशन की दुकान से लोगों को एक ऐसी मुफ्त साड़ी दी गई थी मार्च में। साड़ी और एक बैग दिया गया था साथ ही गरीब कल्याण योजनाओं का विज्ञापन भी है।

    पिछले साल नवम्बर में ही महाराष्ट्र सरकार ने बड़े त्योहार पर हर साल अंत्योदय राशन कार्ड वाली महिलाओं को मुफ्त साड़ी देने की योजना शुरू की थी। गत 3 और 8 अप्रैल के बीच पालघर के 23 गांवों की सैकड़ों आदिवासी महिलाओं ने जव्हार और दहानू तहसील कार्यालय तक मार्च निकाला तथा 300 से अधिक साड़ियां और तस्वीर वाले 700 बैग वापस कर दिए। ये महिलाएं नारे लगा रही थीं कि हमें मुफ्त चीजें मत दीजिए, हमें नौकरियां दीजिए। बेहतर स्कूल, अच्छी सड़कें और स्वास्थ्य सेवाएं दीजिए।

    वसंतवाडी की महिलाओं को पानी लाने के लिए सुबह 4 बजे उठना पड़ता है। बोरवेल दो किलोमीटर दूर है। हमें हर घर में नल चाहिए। हमें मुफ्त साड़ी और बैग नहीं चाहिए। गांव की 52 वर्षीय लाड़कुबाई तो सीधे सवाल करती है कि अगर आपने हमें नौकरी दी होती तो हम खुद साड़ी खरीद पाते। सरकार हमें साड़ी देने वाली कौन होती है? आपको क्या लगता है कि हम अपने कपडे नहीं खरीद सकते। हम इनसे अच्छी साड़िया खरीदेंगे। आप हमें काम दीजिए।