तिरुवनंतपुरम, 11 जून, 2025 – केरल उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड लोकसभा उपचुनाव के लिए अपने नामांकन पत्र में अपनी संपत्ति के बारे में जानकारी छिपाने के आरोपों के संबंध में नोटिस जारी किया है। यह कार्रवाई भाजपा उम्मीदवार नव्या हरिदास द्वारा दायर याचिका के बाद की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि गांधी ने अपने नामांकन दस्तावेजों में अपनी संपत्ति का पूरा खुलासा नहीं किया है।
न्यायालय का नोटिस वायनाड उपचुनाव को लेकर चल रहे राजनीतिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। आरोपों ने बहस को जन्म दिया है और चुनाव प्रक्रियाओं में पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। मामला अब आगे की जांच और अदालती कार्यवाही के लिए लंबित है।
यह घटनाक्रम राजनीतिक दलों और जनता दोनों का ध्यान आकर्षित करने की संभावना है। मामले के परिणाम का राजनीतिक परिदृश्य, विशेष रूप से केरल पर प्रभाव पड़ सकता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम के बाद सीमा पर स्थिति थोड़ी स्थिर हुई है, लेकिन कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने पहलगाम घटना पर अपने बेवजह और असंवेदनशील बयान से नया विवाद खड़ा कर दिया है। जब देश सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है, तो राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर क्षेत्र के सांसद ने इस गंभीर मुद्दे को हल्के में लिया।
भास्कर की खबर के अनुसार बेनीवाल ने अपनी ताजा टिप्पणी में पर्यटकों की हत्या के घटनाक्रम पे सवाल उठाए है, जिसमें उनका उनके धर्म पूछने के बाद हत्या कर दी गई थी। उनका तर्क है कि ऐसा कोई सवाल पूछा गया इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। क्या सच में, बेनीवाल जी, कितने सबूत चाहिए?
इस घटना में अनेक लोगों को उसकी पत्नी के सामने धर्म पूछकर मारा गया, और कुछ मामलों में तो लोगों को नंगा करके धर्म की जांच भी की गई। क्या इन घटनाओं को नकारना उचित है, जब इतने सारे लोग इसी तरह मारे गए? क्या यह पर्याप्त सबूत नहीं है, बेनीवाल जी? क्या विधवाएं गलत बोल रही है? बेनीवाल यह तक कह रहे हैं कि मोदी को इस घटना के बारे में बताना वाला बयान भी गलत है!
क्या यह वाकई उचित है? क्या उन्हें यह नहीं समझना चाहिए कि जब सेना ऑपरेशन करती है, तो क्या उन्हें यह पता होता है कि कैमरा लेकर सबूत भी जुटाने होंगे? कांग्रेस का एकमात्र काम है, हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेना और जनता में भ्रम पैदा करना। ऑपरेशन सिंदूर में सेना ने दुश्मन को माकूल जवाब दिया, बलिदान भी दिया, लेकिन फिर भी कुछ विपक्षी नेताओं के लिए सबूत जुटाना जरूरी था जो उन्होंने जुटाया।
बेनीवाल के बयान सिर्फ इस घटना के प्रति असंवेदनशीलता ही नहीं, बल्कि देश में सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ कार्रवाई को भी कमजोर करते हैं। कांग्रेस के नेताओं के लिए हर मुद्दे पर सवाल उठाना एक बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है। क्या कांग्रेस इन घटनाओं को नकारकर यह संदेश दे रही है कि धर्म के आधार पर हत्या कोई बड़ी बात नहीं है? राहुल गांधी कहते है हम सरकार के साथ खड़े है, ये साथ खड़े है आप?
पाकिस्तान को कुछ कहने की जरूरत नहीं है, हमारे खुद कुछ नेता ही बातों को तोड़ मरोड़ के पेश करने के लिए काफी है। यह देश के अंदर ही असहमति और भ्रम फैलाने का काम करता है। हमें इस तरह के बयानों का विरोध करना चाहिए और उन लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए जो इन हिंसक घटनाओं का शिकार हुए हैं।
यह असंवेदनशीलता है। इस घटना को केवल एक सुरक्षा चूक कहकर, यह कहना कि यह सांप्रदायिक हिंसा के बढ़ते खतरे को नहीं दिखाता, उन पीड़ितों के साथ अन्याय है। हमें अब और बहस नहीं चाहिए, हमें कार्रवाई, जिम्मेदारी और न्याय चाहिए थी उन लोगों के लिए जिनकी जान इतनी बेरहमी से ली गई। और ऑपरेशन सिंदूर में वो हासिल हुई।
बेनीवाल के बयान भारतीय राजनीति में अब भी मौजूद अस्वीकृति की जहरीली संस्कृति को दर्शाते हैं। यह समय है कि कांग्रेस अपनी सोच, नेतृत्व और अपनी जिम्मेदारी की पुनः मूल्यांकन करे। एक दुनिया में जहां हर सबूत, हर जीवित गवाह की कहानी और हर पीड़ित की प्रार्थना मायने रखती है, यह दुखद है कि एक जन प्रतिनिधि जमीन पर हो रही वास्तविकता से इतना दूर है।
देश की सुरक्षा को लेकर माहौल संवेदनशील है। सीमाओं पर तनाव है, और ऐसे वक्त में सभी राजनीतिक विचारधाराएं—चाहे असदुद्दीन ओवैसी हों या उमर अब्दुल्ला—एक सुर में राष्ट्रीय एकता की बात कर रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस द्वारा जारी किया गया एक पोस्टर चर्चा में आ गया।
इस पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए “modi missing hai” लिखा गया, लेकिन उसी तस्वीर में जो इंसान दिखाया गया है उसका सिर नहीं है और इसीलिए डिज़ाइन के कुछ हिस्से, सोशल मीडिया पर एक खास सन्दर्भ में देखे गए, जिसे कई लोगों ने ‘सर तन से जुदा’ जैसी कट्टरपंथी सोच से जोड़ के देखा।
और मोदी गुम है कहाँ? हर रोज मीटिंग हो रही है, प्रधानमंत्री मोदी जनता के साथ सीधे संवाद कर रहे हैं। सेना को सीधे कार्रवाई करने के आदेश दिए जा चुके हैं। अब क्या कांग्रेस ये चाहती है कि सारे प्लान खुले में पेपर भी बताए जाएं।
अभी दो दिन पहले ही आतंकवादियों ने ऐसा ही सिर कटा पोस्टर जारी किया था जिसको यहां पूरा दिखाया भी नहीं जा सकता। क्या इतना सा भी ज्ञान नहीं है कॉंग्रेस की सोशल मीडिया टीम में?
हालांकि कांग्रेस का कहना है कि उनका मकसद प्रधानमंत्री पर तंज कसना था, न कि किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा देना। विवाद बढ़ने पर कांग्रेस ने बिना कोई सार्वजनिक सफाई दिए पोस्टर डिलीट कर दिया। यही चुप्पी अब सवालों के घेरे में है।
अगर पार्टी का इरादा गलत नहीं था, तो उसे हटाया क्यों गया? और अगर शब्द या डिज़ाइन के चुनाव में गलती हुई, तो उसकी ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ली गई?
राजनीतिक आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन विचार और विमर्श की मर्यादा बनाए रखना भी ज़रूरी है, खासतौर पर तब, जब देश आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों से जूझ रहा हो। ऐसे समय में संदिग्ध प्रतीकों और शब्दों का चयन, चाहे अनजाने में ही क्यों न हो, राजनीतिक सूझबूझ पर सवाल खड़े करता है।
संवेदनशील समय में, शब्द केवल शब्द नहीं होते, वे संदेश बन जाते हैं। और यही बात हर दल को समझनी होगी।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में इस बार राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने फिर से बाजी मार ली है और वह तीसरी बार सरकार बनाने की ओर बढ़ रही है, जबकि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस का गठबंधन सत्ता में आने के लिए तैयार है।
हरियाणा में भाजपा ने इस बार कुल 90 सीटों में से 49 सीटों पर बढ़त बना ली है, जो 2019 के चुनावों से बेहतर प्रदर्शन है, जब पार्टी ने 40 सीटें जीती थीं। पार्टी ने इस बार ‘जाट वर्सेज नॉन जाट’ की राजनीति से गैर-जाट वोटरों को अपने साथ किया और जाट बहुल इलाकों में भी 9 नई सीटें जीत लीं। हरियाणा के इतिहास में पहली बार कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में आ रही है।
वहीं जम्मू-कश्मीर, जहां लगभग एक दशक बाद चुनाव हो रहे हैं, में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने बाजी मार ली है। इस गठबंधन ने 52 सीटों पर बढ़त बनाई है, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस 36 सीटों पर और कांग्रेस 6 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं, भाजपा 29 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और अब तक 26 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है।
पिछले चुनावों में प्रमुख भूमिका निभाने वाली पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) का इस बार लगभग सफाया हो गया है और उसे केवल 3 सीटों पर जीत मिली है। आम आदमी पार्टी और जेपीसी को एक-एक सीट पर जीत हासिल हुई है। निर्दलीय उम्मीदवार भी 7 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं, जिनमें से 6 ने जीत दर्ज की है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने घोषणा की है कि उनके बेटे उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे। उमर अब्दुल्ला ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था और बडगाम सीट से जीत चुके हैं, जबकि गांदरबल सीट पर भी उनकी बढ़त बनी हुई है।
महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट से हार गई हैं और उन्होंने इसे जनता का फैसला मानते हुए स्वीकार किया। वहीं, भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना भी नौशेरा सीट से हार गए हैं।
यह चुनाव परिणाम जहां हरियाणा में भाजपा की मजबूती को दिखा रहे हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन कश्मीर घाटी में नई सियासी दिशा तय करता दिख रहा है। भाजपा ने जम्मू संभाग में जीत हासिल की है।
जयपुर। यहां विद्याधर नगर विधानसभा क्षेत्र के वार्ड नंबर 39 एवं 36 के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने वार्ड नंबर 39 के अध्यक्ष श्री राजकुमार सिंह पवार, पार्षद प्रत्याशी श्री हिम्मत सिंह खाचरियावास, वार्ड नंबर 36 के अध्यक्ष श्री बी सी चौधरी, पार्षद प्रत्याशी श्री अजय सैनी के नेतृत्व में क्षेत्र की बिजली ऐवम पानी समस्या पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए कालवाड़ रोड, मनोहर पैलेस के सामने प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी श्रीमती मंजू शर्मा, श्री गिरिराज गर्ग, श्री नरेंद्र वशिष्ठ, श्री हरेंद्र पाल सिंह जादौन, श्री मनोज अमन, श्री इमरान छोटी बेरी, के अतिरिक्त कांग्रेस के सीनियर कार्यकर्ता श्री हवा सिंह बुगालिया,श्री राम सहाय सैनी, श्री मनोज शर्मा, श्री बी एल वर्मा, श्री रोहिताश यादव, श्री महावीर चौहान, श्री लाल बिहारी,श्री प्रदीप महेश्वरी, श्री कैलाश तिवारी, श्री मुकेश खुड़ीया, श्री प्रकाश मादेका, श्री श्रवण डीडल, श्री कपिल कुमावत, श्रीबलराम यादव के अतिरिक्त अन्य कांग्रेस जन उपस्थित रहे। सुबह लगभग 9.00 बजे आधा घंटे तक सरकार के विद्युत एवं जलदाय मंत्री के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की गई। सरकार के उक्त मंत्रियों के जनता के प्रति व्यवहार एवं वर्ताव की खुले मंच से निंदा की गई।
ज्ञात रहे, पिछले 1 महीने से झोटवाड़ा क्षेत्र में जनता पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही है, और विभाग को वार्ड के पदाधिकारियों द्वारा बार-बार निवेदन करने के बाद भी समस्या जस की तस् बनी हुई है। यही हाल बिजली का है क्षेत्र में रोजाना बिजली की अघोषित कटौती हो रही है। जिस कारण क्षेत्र की जनता गर्मी में बेहाल हो रही है। विरुद्ध प्रदर्शन के अंत में विद्युत मंत्री एवं जलदाय मंत्री के पुतले जलाए गए। इस विरोध प्रदर्शन को आम जनता का पूरा सहयोग मिला।
भारतीय आम चुनाव 2024 के लिए मतदान समाप्त हो चुके हैं और अब सभी की निगाहें एक्जिट पोल के परिणामों पर हैं। प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियों ने अपने-अपने सर्वेक्षणों के आधार पर संभावित परिणामों की घोषणा कर दी है। इन एक्जिट पोल के अनुसार, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को भारी बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है।
ये समाचार लगातार अपडेट की जा रही है.
प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियों के अनुमान
SAAM – जन की बात: NDA को 377 सीटें, कांग्रेस+ को 151 सीटें और अन्य को 15 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया न्यूज़ – पोल्स्ट्रेट: NDA को 371 सीटें, कांग्रेस+ को 125 सीटें और अन्य को 47 सीटें मिलने का अनुमान है।
रिपब्लिक भारत – मैट्रिज: NDA को 361 सीटें, कांग्रेस+ को 126 सीटें और अन्य को 56 सीटें मिलने का अनुमान है।
रिपब्लिक टीवी – P MARQ: NDA को 359 सीटें, कांग्रेस+ को 154 सीटें और अन्य को 30 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया न्यूज़ – डी डायनामिक्स: NDA को 371 सीटें, कांग्रेस+ को 125 सीटें और अन्य को 47 सीटें मिलने का अनुमान है।
पोल ऑफ पोल्स के अनुसार, NDA को कुल 368 सीटें, कांग्रेस+ को 136 सीटें और अन्य को 39 सीटें मिलने का अनुमान है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि NDA को बहुमत प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि बहुमत के लिए आवश्यक 272 सीटों के मुकाबले यह संख्या काफी अधिक है।
इन एक्जिट पोल के परिणामों से यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को भारी बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है। हालांकि, अंतिम परिणाम 4 जून को घोषित किए जाएंगे, लेकिन एक्जिट पोल के संकेत स्पष्ट रूप से NDA की बढ़त की ओर इशारा कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि ये एक्जिट पोल कितने सटीक साबित होते हैं और क्या वास्तविक परिणाम इन अनुमानों के अनुरूप होते हैं।
मुख्य ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म यूबीएस ने हाल ही में एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आगामी चुनाव में हार जाती है, तो सेंसेक्स 2014 के पूर्व स्तरों पर वापस आ सकता है। इसका मतलब है कि भारतीय शेयर बाजार को एक बड़ा झटका लग सकता है। आइए, देखते हैं कि यूपीए और एनडीए के शासनकाल में सेंसेक्स का प्रदर्शन कैसा रहा है और वर्तमान में सेंसेक्स का स्तर क्या है।
यूपीए 2 के दौरान सेंसेक्स: यूपीए-2 (2009-2014) के दौरान, सेंसेक्स ने 106% की वृद्धि दर्ज की थी। इस अवधि में भारतीय शेयर बाजार ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया, और विदेशी निवेशकों ने भी काफी निवेश किया। यूपीए 2 आने पे सेंसेक्स 17000 पॉइंट्स पे था अगले 5 साल में 24000 पॉइंट्स तक आया।
एनडीए 2 के दौरान सेंसेक्स: नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली एनडीए-2 सरकार (2014-वर्तमान) के समय में, सेंसेक्स में 47.4% की वृद्धि हुई है। हालांकि, यह वृद्धि यूपीए-2 की तुलना में कम रही है। इस दौरान नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसे कदमों ने अर्थव्यवस्था और बाजार पर प्रभाव डाला पर फिर भी फिलहाल सेंसेक्स 75000 पॉइंट्स के स्तर पे है, यानी 10 साल में 3 गुना बड़ा है।
वर्तमान सेंसेक्स स्तर: वर्तमान में सेंसेक्स 75,000 अंकों के करीब है। यह स्तर पिछले कुछ वर्षों में हुए सुधार, केंद्र में मजबूत सरकार और भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों की सकारात्मक भावनाओं को दर्शाता है।
यूबीएस एक प्रमुख वैश्विक बैंकिंग और निवेश कंपनी है। उसकी एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, यदि बीजेपी चुनाव हारती है, तो निवेशकों का विश्वास घट सकता है और विदेशी निवेशक अपने पैसे निकाल सकते हैं, जिससे सेंसेक्स में गिरावट आ सकती है। इसका मतलब है कि बाजार 2014 के पूर्व स्तरों पर वापस आ सकता है, जो 20,000 से 25,000 अंकों के बीच था।
साफ है की राजनेतिक स्थिरता और निवेशकों का विश्वास भारतीय शेयर बाजार के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। किसी भी प्रमुख राजनीतिक परिवर्तन का सीधा असर सेंसेक्स और बाजार की समग्र स्थिति पर पड़ सकता है। आने वाले चुनावों का परिणाम और उसके बाद की सरकार की नीतियाँ निश्चित रूप से बाजार की दिशा निर्धारित करेंगी। अगर इंडिया गठबंधन और कांग्रेस की सरकार बनती है तो भी निवेशक उसमे एक मजबूत और स्थिर सरकार चाहेंगे।
शेयर मार्केट में सिर्फ निवेशकों और विदेशी कंपनियों का ही नहीं बल्कि पेंशन, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस कंपनियों आदि का भी पैसा लगा होता है।
जैसे-जैसे चुनाव परिणामों का दिन करीब आता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को देश भर में मिले-जुले परिणामों का सामना करना पड़ रहा है। 400 सीटें जीतने के अपने महत्वाकांक्षी नारे के बावजूद, बीजेपी के लिए 272 सीटें हासिल करना चुनौतीपूर्ण है, जो कि बहुमत के लिए आवश्यक है।
प्रधानमंत्री मोदी से मजबूत व्यक्तित्व इस समय भारतीय राजनीति में किसी का नहीं है।
भले ही बीजेपी को बहुमत न मिले, एनडीए के साथ मिलकर तीसरी बार सरकार बनाने की संभावना है।
कांग्रेस अपनी सीटें दोगुनी कर सकती है, राजस्थान इसका एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
प्रज्वल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल से जेडीएस को निश्चित गंभीर रूप से नुकसान होगा, लेकिन बीजेपी इससे अछूती रह सकती है।
मणिपुर हिंसा ने लंबे समय के लिए बीजेपी के पूर्वोत्तर के सपने को तोड़ दिया है।
कांग्रेस को दक्षिण भारत में नई जीवनरेखा मिल सकती है।
अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव अब स्थापित नेता है और वे परिवार से जुड़ी अपनी पार्टियों को दूसरी पीढ़ी की राजनीति को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा पाएंगे।
वर्तमान विश्लेषण के अनुसार, बीजेपी 220 से 250 सीटें जीत सकती है, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 35 से 48 सीटें हासिल कर सकता है, जिससे एनडीए सरकार बना सकेगा। 2014 में बीजेपी ने 282 और एनडीए ने 336 सीटें जीती थीं और 2019 में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती थीं और एनडीए ने 353 सीटें जीती थीं।
इस संभावित कमी के कई कारण हैं। कर्नाटक में, बीजेपी को 15 सीटों तक का नुकसान होने की उम्मीद है, जो कि एक महत्वपूर्ण राज्य में एक बड़ी हानि है। पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो पार्टी के लिए एक मजबूत बेस हो सकता था, मणिपुर में अस्थिरता के कारण निराश कर सकता है। इस अस्थिरता ने उस समर्थन को कम कर दिया है, जो अन्यथा इस क्षेत्र में एक भाजपा का एक नया गढ़ बन सकता था।
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 20 दिनों में 22 से भी ज्यादा मीडिया आउटलेट्स को इंटरव्यू दिए है।
हरियाणा एक और चुनौती पेश करता है, जहां किसान विरोध के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई एंटी-इनकंबेंसी लहर बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है। पर यहां चौंकाने वाले परिणाम भी संभव है, जनता एग्जिट पोल से पहले भी अलग गई है। पंजाब विशेष रूप से कठिन चुनाव क्षेत्र होने की उम्मीद है, जहां बीजेपी को लगभग पूरी तरह से हार का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि, बीजेपी के लिए सभी खबरें खराब नहीं हैं। पार्टी को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में बढ़त हासिल होने की उम्मीद है, जहां बीजेपी ऐतिहासिक रूप से कमजोर रही है। ओडिशा भी पार्टी के लिए एक संभावित लाभ वाला राज्य प्रतीत हो रहा है।
अन्य पार्टियां बीजेपी की कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं। राजस्थान में, कांग्रेस 10 सीटें जीत सकती है, जबकि उत्तर प्रदेश में, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 10 से अधिक सीटें हासिल कर सकती है, जबकि मायावती की संभावनाएं धुंधली लग रही हैं। बिहार में, तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) 11 से अधिक सीटें जीत सकती है, जिससे राज्य में पार्टी की पकड़ मजबूत हो जाएगी। 2014 में, कांग्रेस ने केवल 44 सीटें और उसके गठबंधन ने 59 सीटें जीती थीं, 2019 में कांग्रेस ने 52 सीटें और उसके गठबंधन ने 91 सीटें जीती थीं।
प्रियंका गांधी की सभाओं में भीड़ देखने को मिली है।
पश्चिम बंगाल आश्चर्यजनक नतीजे दे सकता है, लेकिन बीजेपी के संभावित आश्चर्यों के बावजूद अपनी बुनियाद बनाए रखने की संभावना है। इस बीच, पंजाब में आप, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा होने की उम्मीद है, जिससे बीजेपी के लिए संभावनाएं बहुत कम बचती है।हालांकि बीजेपी अपने 400 सीटों के लक्ष्य से चूक सकती है, लेकिन उसके सरकार से बाहर हो जाने की बेहद कम संभावनाएं है, उसका राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव बना हुआ है। भाजपा का प्रदर्शन कई महत्वपूर्ण राज्यों जैसे कर्नाटक और पूर्वोत्तर में हानियों को कम करने और दक्षिण और ओडिशा में संभावित लाभों को भुनाने पर निर्भर करेगा।
इस बीच, क्या विपक्ष बीजेपी की कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं? कांग्रेस और इंडिया गठबंधन कितनी मजबूती से चुनाव लड़ पाया है, किन शर्तो पे साथ रह सकेगा और क्या वक्त पड़ने पर और दलों को अपने साथ जोड़ पाएगा ये देखने वाला होगा। पुराने घट जोड़ की सरकारों का क्या हुआ था ये देश जनता है।
हाल के विश्लेषण में बीजेपी के सहयोगियों के साथ एनडीए के समर्थन से सरकार बनाने की संभावना है। दूसरी ओर, कांग्रेस और उसके सहयोगी 220 सीटों तक पहुंच सकते हैं, लेकिन सत्ता से दूर रहेंगे। अंतिम परिणाम अभी भी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रमुख राज्यों में मतदाता के वोट द्वारा प्रभावित हो सकते हैं, जो 50 सीटों तक के बदलाव ला सकते है और दिग्गजों के राजनीतिक करियर को बना या बिगाड़ सकते हैं।
पूर्व राज्यपाल और राजस्थान की पूर्व डिप्टी सीएम रहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. कमला बेनीवाल (97) का निधन हो गया है। बुधवार दोपहर बाद उन्होंने जयपुर के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस ली। जवाहर सर्किल के पास आवास पर आज खाना खाने के दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने पर परिजन उन्हें फोर्टिस अस्पताल लेकर गए, जहां इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया। अंतिम संस्कार कल जयपुर में होगा।
डॉ. कमला बेनीवाल ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्होंने राजस्थान की कृषि मंत्री रहते हुए राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने राज्य के जल संसाधन मंत्री के रूप में लगभग 48,000 जल संग्रहण परियोजनाओं का निर्माण करवाया, जिससे राज्य के किसानों को सूखे से राहत मिली।
डॉ. बेनीवाल ने गुजरात की राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया और अपने कार्यकाल के दौरान गुजरात लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर काफी चर्चा में रहीं। उनके द्वारा बिना राज्य सरकार की सहमति के लोकायुक्त नियुक्त करने पर विवाद हुआ, जिसे बाद में गुजरात उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने सही ठहराया।उनकी राजनीतिक यात्रा में वे त्रिपुरा और मिजोरम की राज्यपाल भी रहीं।
भले ही राजस्थान भाजपा की सियासत में लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बड़े बदलाव की बात कही जा रही हो, लेकिन राजस्थान कांग्रेस में संगठन के स्तर पर बदलाव की क़वायद अभी से शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि पीसीसी चीफ के पद के लिए कांग्रेस के अलग-अलग ख़ेमों ने क़वायद शुरू कर दी है। इसमें अशोक गहलोत और सचिन पायलट की भी एंट्री होते देखी जा रही है।
हालांकि सब कुछ लोकसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगा, क्योंकि अगर राजस्थान में कांग्रेस लोकसभा चुनाव के रिजल्ट में उम्मीद के मुताबिक़ प्रदर्शन करती है, तो हो सकता है गोविंद सिंह डोटासरा को एक्सटेंशन मिल जाए।
क्या डोटासरा को मिलेगा एक्सटेंशन?
डोटासरा को जुलाई 2020 में सियासी संकट के समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। उन्हें इस पद पर क़रीब चार साल का समय हो गया है। विधानसभा चुनाव के बाद से उनके बदले जाने को लेकर चर्चाएं थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र उन्हें कंटिन्यू किया गया। अब उन्हें आगे समय मिलेगा या नहीं, यह सब कुछ आलाकमान पर निर्भर करता है।
अशोक गहलोत के नाम पर चर्चा
सूत्रों के अनुसार, इस बार पीसीसी चीफ के पद के लिए अशोक गहलोत के नाम की भी चर्चा है। कहा जा रहा है कि अगर केंद्र में मोदी तीसरी बार पीएम बनते हैं, तो अशोक गहलोत राजस्थान की सियासत में ही बने रहना चाहेंगे और राजस्थान में संगठन पर पकड़ बनी रहे इसके लिए उनके ख़ेमे की ओर से पीसीसी चीफ के पद को लेकर लॉबिंग की जा रही है। गहलोत मुख्यमंत्री बनने से पहले पीसीसी चीफ पद पर रह चुके हैं। लेकिन इस बार इस पद के लिए उनका नाम चर्चाओं में होना सबके लिए चौंकाने वाला है। अगर अशोक गहलोत ख़ुद नहीं बने, तो अपने खेमे के किसी युवा नेता को यह ज़िम्मेदारी दिला सकते हैं ताकि राजस्थान में कांग्रेस की सियासत पर उनकी पकड़ मज़बूत बनी रहे।
सचिन पायलट की दिलचस्पी पर आलाकमान का फैसला
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सबसे बड़ा नाम सचिन पायलट का है। सचिन पायलट पहले भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं और 2018 में कांग्रेस सत्ता में भी आई थी। इस बार भी विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद उन्हें फिर से अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी। कहा गया था कि सचिन पायलट की ओर से दिलचस्पी नहीं दिखाने पर ही डोटासरा को कंटिन्यू करने का निर्णय लिया गया था। लोकसभा चुनाव में राजस्थान कांग्रेस के नेताओं में सचिन पायलट ने सबसे अधिक राज्यों में चुनाव प्रचार किया है, ऐसे में अगर पायलट चाहेंगे, तो कांग्रेस उन्हें राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का ज़िम्मा दे सकती है।
इनके नामों पर भी हो रही है चर्चा
इन तीन नामों के अलावा चर्चा इस बात की भी है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए आलाकमान जातिगत समीकरण भी साधना चाहेगा। दलित नेता के रूप में टीका राम जूली को नेता प्रतिपक्ष की ज़िम्मेदारी दी गई है। ऐसे में ओबीसी या किसी जनरल कास्ट के नेता को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इन नेताओं में हरीश चौधरी, रघु शर्मा, मुरारीलाल मीणा, अशोक चांदना जैसे नाम भी शामिल हैं। हालाँकि यह तय है कि राजस्थान के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नाम तय करने के दौरान कांग्रेस के सभी खेमों की सहमति बनाने की कोशिश भी की जाएगी ताकि अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिहाज़ से राजस्थान में मज़बूत संगठनात्मक ढांचा तैयार किया जा सके।
दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दिया और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। इसका कारण उन्होंने बताया को वो कांग्रेस पार्टी के आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन के खिलाफ है। लवली ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के आपत्तियों के बावजूद आप AAP के भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उसके साथ गठबंधन के खिलाफ अपनी निराशा व्यक्त की।
उन्होंने यकीन जताया कि भाजपा बहुमत के साथ देश में सरकार बनाएगी और बहुत जल्द भाजपा का झंडा दिल्ली में भी लहराएगा। लवली ने यूनियन मंत्री हरदीप सिंह पुरी और अन्य पार्टी नेताओं की मौजूदगी में भाजपा ज्वाइन की। कई अन्य कांग्रेस नेताओं, जैसे कि दिल्ली सरकार के मंत्री राज कुमार चौहान भी भाजपा पार्टी में शामिल हो गए।
लवली ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषण का संदर्भ देते हुए कहा कि जैसे इंदिरा ने कहा था वो पार्टी में एक बाहरी महसूस करती है, उन्हें लगता था कि कांग्रेस पार्टी में उनके लिए जगह नहीं है। लवली ने कहा की उन्हें अन्य कार्यकर्ताओं ने भी प्रेरित किया जो दिल्ली और देश के लोगों के लिए लड़ने के लिए उन्हें कहते हैं, जिससे उन्होंने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया।
इससे पहले भी लवली 2017 में कांग्रेस छोड़ की भाजपा में चले गए थे पर फिर वापस कांग्रेस में गए थे।
टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी हरीश मीणा के समर्थन में चुनावी सभा हुई जिसमें की राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, झुंझुनू लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी राहुल कस्वां के साथ जयपुर से विधायक अमीन कागज़ी ने शिरकत कर विशाल जनसभा को संबोधित किया। इस अवसर पर उपस्थित हजारों लोगों ने एकजुट होकर कांग्रेस प्रत्याशी हरीश मीणा को ज्यादा से ज्यादा मतों से जीताने का संकल्प लिया।
चुनाव के चलते राजनेतिक पार्टियों में सरगर्मियां तेज है। नई नियुक्तियां और प्रोग्राम बनाए जा रहे है ताकि अपने मैनिफेस्टो और पार्टी की योजना ज्यादा से ज्यादा वोटर तक पहुंचाई जा सके।
कांग्रेस में भी भारी गतिविधियां और तेजी देखी जा रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मलिका अर्जुन खड़के के निर्देश पर राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी श्री पवन खेड़ा ने श्रीमाधोपुर से डाक्टर अरुण अग्रवाल को देहली लोकसभा चुनावों के लिए कॉर्डिनेटर नियुक्त किया है।
डॉक्टर अरुण ने बताया की वो जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को पार्टी की गारंटी और सरकार आने पे जन कल्याणकारी कार्यकर्मों के बारे में सूचित करेंगे ताकि कांग्रेस सत्ता में आए।
राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर मतदान हो गया है। मतदान 57.87 फीसदी हुआ है। राजस्थान में ये धारणा है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो राज्य सरकार को नुकसान हो है और लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
राजनेतिक विश्लेषकों का मानना है की ज्यादा वोटिंग मोदी वेव और स्विंग की होती है जिससे भाजपा को फायदा होता है, वही काम वोट में कांग्रेस के वोट तो तटस्थ रहते है पर भाजपा को मिलने वाले ज्यादा वोट नही मिल पाते। 19 अप्रैल को डले वोट में सुबह तो काफी भीड़ दिखी पर फिर वोटिंग बूथ खाली से हो गए। गर्मी भी एक कारण थी। एक वोट रमेश शर्मा कहते है, “भाजपा वोटर गर्मी से नही आ रहे, सबको लग रहा है मोदी तो आयेंगे ही, मेरा एक वोट से क्या होगा”.
2009 में कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 और भाजपा का 36.6 फीसदी था। कांग्रेस ने तब यहां 20 सीटें जीती और कांग्रेस ने चार। वही 2014 में मोदी की लहर के कारण प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर करीब 20 फीसदी तक बढ़ गया। भाजपा के लिए राजस्थान के 55.6 फीसदी वोटर्स ने मतदान किया। जबकि कांग्रेस का वोट 2009 की तुलना में 17 फीसदी गिरकर 30.7 फीसदी पर आ गया। पूरी 25 सीटें भाजपा की झोली में गईं।
पिछले 2019 की लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों का वोट शेयर बढ़ा। भाजपा को 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 58.4 फीसदी वोट मिले वहीं कांग्रेस को 4 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 34.2 प्रतिशत वोट दिए गए। पर वोट शेयर के बीच बड़ा अंतर होने के कारण भाजपा को दूसरी बार फिर 25 सीटों पर जीत मिली।
2023 के विधानसभा चुनाव में मालवीय नगर में एक वोटर आरती ने तब बताया था की “राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा बड़िया है। कांग्रेस से स्कीम का लाभ मिलता है और मोदी से देश सही चलता है।”
वही इस सबके बीच भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह आज राजस्थान और उत्तर प्रदेश के चुनावी दौरे पर रहेंगे। वह इन दोनों राज्यों में भाजपा की तीन जनसभाओं को संबोधित करेंगे। शाह सबसे पहले राजस्थान पहुंचेंगे और भीलवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में जहाजपुर के शक्करगढ़ में भाजपा की जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह कोटा के सीएडी ग्राउंड में आयोजित जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के मथुरा पहुंचेंगे और वृंदावन में शाम चार बजे प्रियाकांत जू मंदिर ग्राउंड में पार्टी की जनसभा को संबोधित करेंगे।
आखरी चार चुनावों से ऐसा ही देखने को मिल रहा है की वोट प्रतिशत यदि 3 से 6 फीसदी तक बड़ता है तो फायदा भाजपा को मिलता है वहीं अगर वोट प्रतिशत कम होता है तो भाजपा को मिलने वाला नया और स्विंग वोट काम होता है जिससे कांग्रेस की वापसी की संभावना उत्पन होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जी के भाषण में देश के सामने मौजूद हकीकतों को समेटा गया है और देश किस गति से प्रगति कर रहा है, इसका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति जी ने भारत के उज्ज्वल भविष्य को ध्यान में रखते हुए चार मजबूत स्तंभों पर हमारा ध्यान केंद्रित किया है – नारी शक्ति, युवा शक्ति, गरीब भाई-बहन और किसान, मछुआरे, पशुपालक।
उन्होंने विपक्ष को भी करारा जवाब दिया। कहा कि कांग्रेस को एक अच्छा विपक्ष बनने का बहुत बड़ा अवसर मिला, लेकिन 10 साल में वे उस दायित्व को निभाने में विफल रहे। सिर्फ परिवारवाद में पड़े रहे। एक ही व्यक्ति को लॉन्च करने में लगे रहें। इसी लिए हम 370 और एनडीए 400 पार सीट लेकर तीसरे टर्म में वापसी कर रहा है। ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही आप दर्शक दीर्घा में बैठेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस में एक कैंसिल कल्चर डेवलप हुआ है, अगर हम कहते हैं कि मेक इन इंडिया तो कांग्रेस कहती है कैंसिल, हम कहते हैं– आत्मनिर्भर भारत कांग्रेस कहती है कैंसिल, हम कहते हैं वोकल फॉर लोकल, कांग्रेस कहती है कैंसिल।