आईएएस अधिकारी नियाज़ खान ने ब्राह्मणों पर लिखी अपनी पुस्तक “ब्राह्मण द ग्रेट” का विमोचन काशी महाकाल मंदिर में किया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा कि यदि ब्राह्मण नहीं होते, तो देश का कोई इतिहास ही नहीं होता। ब्राह्मणों ने ही समय-समय पर अपना बलिदान देकर इस देश को बचाया है। किताब में ब्राह्मणों के गौरवशाली इतिहास का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसमें उनके अद्वितीय योगदान और उनकी महानता को उजागर किया गया है।
खान ने इस पुस्तक में बताया है कि किस प्रकार ब्राह्मणों ने ज्ञान, विद्या और संस्कृति के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने लिखा है कि ब्राह्मणों की विद्वता और समर्पण ने भारतीय सभ्यता को समृद्ध और मजबूत बनाया है। इस विमोचन के अवसर पर कई प्रतिष्ठित विद्वानों और समाजसेवकों ने पुस्तक की सराहना की और कहा कि यह पुस्तक समाज में ब्राह्मणों के योगदान को समझने और सराहने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनेगी।
नियाज़ खान की यह पुस्तक न केवल ब्राह्मणों की सामाजिक महानता को प्रस्तुत करती है, बल्कि भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण पहलू को भी उजागर करती है।
विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल को मनाया गया पर लेखकों, पुराने पाठकों और प्रकाशकों में एक चिंता भी देखने को मिली। हमें किताबे जानकारी और कहानियों के जादुई संसार की याद दिलाती है. मगर आज देखने वाली बात ये है कि युवा पीढ़ी और बच्चे किताबों से दूर होते जा रहे हैं. पहले के दिनों में बच्चे किताबों की दुकानों पर घंटों बिताते थे, कहानियों में खो जाते थे. नई कहानियों की किताबो और चाहे कॉमिक्स ही क्यों न हो, के लिए जिद करते थे. अब उनका ध्यान मोबाइल और टैबलेट की स्क्रीन पर टिका रहता है. जहां उन्हें छोटे वीडियो क्लिप्स और फास्ट फॉरवर्ड की आदत लग चुकी है. किताबें उन्हें धीमी और उबाऊ लगती हैं.
इसका ये मतलब नहीं है कि पढ़ने का चलन पूरी तरह खत्म हो गया है. दरअसल, डिजिटल दुनिया में भी इसकी वापसी हो रही है. ऑडियोबुक और ई-बुक्स का चलन बढ़ रहा है. हालांकि, ये एक अलग अनुभव देते हैं. किताबों को छूने, उनके पन्नों को पलटने का अपना ही मजा है. लेकिन किताबें सिर्फ मनोरंजन से कहीं ज्यादा हैं. पढ़ना हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद है. किताबें पढ़ने से तनाव कम होता है, फोकस बढ़ता है, याददाश्त तेज होती है और हमारी सोचने-समझने की क्षमता विकसित होती है. एक दिलचस्प अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ छह मिनट पढ़ने से भी तनाव का स्तर काफी कम हो जाता है.
खुशखबरी ये है कि हिंदी साहित्य में नई प्रतिभाएं भी सामने आ रही हैं. युवा लेखक नई कहानियां लिख रहे हैं, पाठकों को रोमांचित कर रहे हैं. ये तारीफ की बात है. एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 2023 में ही लगभग 80,000 नई हिंदी किताबें प्रकाशित हुई थीं. साथ ही, ई-बुक्स और ऑडियोबुक का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले चार सालों में भारतीय डिजिटल प्रकाशन बाजार का आकार दोगुना हो सकता है.
लेकिन फिर भी, किताबों को बढ़ावा देने के लिए और भी बहुत कुछ किया जा सकता है. स्कूलों में पुस्तकालयों को आधुनिक बनाया जाना चाहिए. बच्चों को उनकी पसंद की किताबें उपलब्ध कराई जाएं. उन्हें किताबों की दुकानों पर ले जाया जाए, कहानी सुनने के सत्र आयोजित किए जाएं. अभिभावकों को भी बच्चों के साथ किताबें पढ़ने के लिए समय निकालना चाहिए. बच्चो को उनकी पसंद की किताब को होमवर्क के रूप में पढ़ने को दी जा सकती है फिर उनसे उसके बारे में रोचक जानकारी साझा करने को कहा जा सकता है.
अगर हम सब मिलकर प्रयास करें तो किताबों को फिर से युवाओं के हाथों में ला सकते हैं. आइए, विश्व पुस्तक दिवस को सिर्फ एक दिन का उत्सव न बनाएं, बल्कि इसे किताबों के प्रेम को जगाने का अभियान बनाएं.