जयपुर, 5 जून 2024: जयपुर से भाजपा की उम्मीदवार मंजू शर्मा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। 47 साल बाद जयपुर से किसी महिला सांसद का चुनाव जीतना एक महत्वपूर्ण घटना है। इस मौके पर राजस्थान ब्राह्मण महासभा की प्रदेश महिला अध्यक्ष अरुणा गौड ने मंजू शर्मा को हार्दिक बधाई दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
चित्तौड़गढ़ से तीसरी बार सांसद चुने गए ब्राह्मण नेता सी पी जोशी को भी अरुणा गौड ने हार्दिक शुभकामनाएं दी
भारतीय आम चुनाव 2024 के लिए मतदान समाप्त हो चुके हैं और अब सभी की निगाहें एक्जिट पोल के परिणामों पर हैं। प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियों ने अपने-अपने सर्वेक्षणों के आधार पर संभावित परिणामों की घोषणा कर दी है। इन एक्जिट पोल के अनुसार, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को भारी बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है।
ये समाचार लगातार अपडेट की जा रही है.
प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियों के अनुमान
SAAM – जन की बात: NDA को 377 सीटें, कांग्रेस+ को 151 सीटें और अन्य को 15 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया न्यूज़ – पोल्स्ट्रेट: NDA को 371 सीटें, कांग्रेस+ को 125 सीटें और अन्य को 47 सीटें मिलने का अनुमान है।
रिपब्लिक भारत – मैट्रिज: NDA को 361 सीटें, कांग्रेस+ को 126 सीटें और अन्य को 56 सीटें मिलने का अनुमान है।
रिपब्लिक टीवी – P MARQ: NDA को 359 सीटें, कांग्रेस+ को 154 सीटें और अन्य को 30 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया न्यूज़ – डी डायनामिक्स: NDA को 371 सीटें, कांग्रेस+ को 125 सीटें और अन्य को 47 सीटें मिलने का अनुमान है।
पोल ऑफ पोल्स के अनुसार, NDA को कुल 368 सीटें, कांग्रेस+ को 136 सीटें और अन्य को 39 सीटें मिलने का अनुमान है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि NDA को बहुमत प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि बहुमत के लिए आवश्यक 272 सीटों के मुकाबले यह संख्या काफी अधिक है।
इन एक्जिट पोल के परिणामों से यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को भारी बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है। हालांकि, अंतिम परिणाम 4 जून को घोषित किए जाएंगे, लेकिन एक्जिट पोल के संकेत स्पष्ट रूप से NDA की बढ़त की ओर इशारा कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि ये एक्जिट पोल कितने सटीक साबित होते हैं और क्या वास्तविक परिणाम इन अनुमानों के अनुरूप होते हैं।
देश में 2024 के लोकसभा चुनाव संपन्न हुए। 7 चरण और तीन महीने लंबे चले चुनावों का मतदान आज 8 राज्यों में वोटिंग के बाद समाप्त हो चुका है। अब सभी की निगाहें 4 जून पर टिकी हैं, जब चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस बार के चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा तो दिखी पर जनता के बीच गहरा उत्साह नहीं।
प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियों के आंकड़े:
चुनाव के तुरंत बाद, प्रमुख एक्जिट पोल एजेंसियाँ अपनी-अपनी सुर्वे के आधार पे अपने आंकड़े घोषित करेंगी। कुछ एजेंसियों के पूर्वानुमान जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। एक्जिट पोल के परिणाम चुनाव के अंतिम नतीजों का एक संकेत हो सकते हैं और इससे राजनीतिक दलों की स्थिति का मोटे तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है। बाकी जनता के मन में क्या है ये तो 4 जून को ही साफ होगा।
हम आपके लिए चुनावी परिणामों की व्यापक कवरेज लाने जा रहे हैं। एक्जिट पोल के परिणाम आने के बाद हम आपको चुनाव के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जानकारी देंगे। विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में कैसे मतदान हुआ, किन मुद्दों ने मतदाताओं को प्रभावित किया, और कौन से राजनीतिक दल किस स्थिति में हैं, इन सभी विषयों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया जाएगा।
हमारी पूर्व की विश्लेषण रिपोर्ट
हमारे द्वारा पहले साझा की गई विश्लेषण रिपोर्ट यहाँ उपलब्ध है। इस रिपोर्ट में हमने चुनावी अभियान, प्रमुख मुद्दे, मतदाताओं की प्रवृत्तियाँ और संभावित परिणामों का आकलन किया है। यह रिपोर्ट आपको चुनाव की तस्वीर समझने में मदद करेगी।
4 जून को चुनाव परिणाम
परिणाम 4 जून को घोषित किए जाएंगे। दोपहर 12 बजे तक काफी हद तक स्थिति साफ हो जाएगी। इस दिन की प्रतीक्षा पूरे देश में की जा रही है। चुनाव के नतीजे न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि आम जनता के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये परिणाम यह निर्धारित करेंगे कि आने वाले वर्षों में देश का नेतृत्व कौन करेगा और किस दिशा में देश आगे बढ़ेगा।
हम आपके लिए हर महत्वपूर्ण जानकारी और ताजातरीन खबरें लाते रहेंगे। तब तक हमारे साथ जुड़े रहें और ताज़ा जानकारी प्राप्त करते रहें।
मुख्य ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म यूबीएस ने हाल ही में एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आगामी चुनाव में हार जाती है, तो सेंसेक्स 2014 के पूर्व स्तरों पर वापस आ सकता है। इसका मतलब है कि भारतीय शेयर बाजार को एक बड़ा झटका लग सकता है। आइए, देखते हैं कि यूपीए और एनडीए के शासनकाल में सेंसेक्स का प्रदर्शन कैसा रहा है और वर्तमान में सेंसेक्स का स्तर क्या है।
यूपीए 2 के दौरान सेंसेक्स: यूपीए-2 (2009-2014) के दौरान, सेंसेक्स ने 106% की वृद्धि दर्ज की थी। इस अवधि में भारतीय शेयर बाजार ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया, और विदेशी निवेशकों ने भी काफी निवेश किया। यूपीए 2 आने पे सेंसेक्स 17000 पॉइंट्स पे था अगले 5 साल में 24000 पॉइंट्स तक आया।
एनडीए 2 के दौरान सेंसेक्स: नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली एनडीए-2 सरकार (2014-वर्तमान) के समय में, सेंसेक्स में 47.4% की वृद्धि हुई है। हालांकि, यह वृद्धि यूपीए-2 की तुलना में कम रही है। इस दौरान नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसे कदमों ने अर्थव्यवस्था और बाजार पर प्रभाव डाला पर फिर भी फिलहाल सेंसेक्स 75000 पॉइंट्स के स्तर पे है, यानी 10 साल में 3 गुना बड़ा है।
वर्तमान सेंसेक्स स्तर: वर्तमान में सेंसेक्स 75,000 अंकों के करीब है। यह स्तर पिछले कुछ वर्षों में हुए सुधार, केंद्र में मजबूत सरकार और भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों की सकारात्मक भावनाओं को दर्शाता है।
यूबीएस एक प्रमुख वैश्विक बैंकिंग और निवेश कंपनी है। उसकी एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, यदि बीजेपी चुनाव हारती है, तो निवेशकों का विश्वास घट सकता है और विदेशी निवेशक अपने पैसे निकाल सकते हैं, जिससे सेंसेक्स में गिरावट आ सकती है। इसका मतलब है कि बाजार 2014 के पूर्व स्तरों पर वापस आ सकता है, जो 20,000 से 25,000 अंकों के बीच था।
साफ है की राजनेतिक स्थिरता और निवेशकों का विश्वास भारतीय शेयर बाजार के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। किसी भी प्रमुख राजनीतिक परिवर्तन का सीधा असर सेंसेक्स और बाजार की समग्र स्थिति पर पड़ सकता है। आने वाले चुनावों का परिणाम और उसके बाद की सरकार की नीतियाँ निश्चित रूप से बाजार की दिशा निर्धारित करेंगी। अगर इंडिया गठबंधन और कांग्रेस की सरकार बनती है तो भी निवेशक उसमे एक मजबूत और स्थिर सरकार चाहेंगे।
शेयर मार्केट में सिर्फ निवेशकों और विदेशी कंपनियों का ही नहीं बल्कि पेंशन, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस कंपनियों आदि का भी पैसा लगा होता है।
जैसे-जैसे चुनाव परिणामों का दिन करीब आता जा रहा है, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को देश भर में मिले-जुले परिणामों का सामना करना पड़ रहा है। 400 सीटें जीतने के अपने महत्वाकांक्षी नारे के बावजूद, बीजेपी के लिए 272 सीटें हासिल करना चुनौतीपूर्ण है, जो कि बहुमत के लिए आवश्यक है।
प्रधानमंत्री मोदी से मजबूत व्यक्तित्व इस समय भारतीय राजनीति में किसी का नहीं है।
भले ही बीजेपी को बहुमत न मिले, एनडीए के साथ मिलकर तीसरी बार सरकार बनाने की संभावना है।
कांग्रेस अपनी सीटें दोगुनी कर सकती है, राजस्थान इसका एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
प्रज्वल रेवन्ना सेक्स स्कैंडल से जेडीएस को निश्चित गंभीर रूप से नुकसान होगा, लेकिन बीजेपी इससे अछूती रह सकती है।
मणिपुर हिंसा ने लंबे समय के लिए बीजेपी के पूर्वोत्तर के सपने को तोड़ दिया है।
कांग्रेस को दक्षिण भारत में नई जीवनरेखा मिल सकती है।
अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव अब स्थापित नेता है और वे परिवार से जुड़ी अपनी पार्टियों को दूसरी पीढ़ी की राजनीति को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा पाएंगे।
वर्तमान विश्लेषण के अनुसार, बीजेपी 220 से 250 सीटें जीत सकती है, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 35 से 48 सीटें हासिल कर सकता है, जिससे एनडीए सरकार बना सकेगा। 2014 में बीजेपी ने 282 और एनडीए ने 336 सीटें जीती थीं और 2019 में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती थीं और एनडीए ने 353 सीटें जीती थीं।
इस संभावित कमी के कई कारण हैं। कर्नाटक में, बीजेपी को 15 सीटों तक का नुकसान होने की उम्मीद है, जो कि एक महत्वपूर्ण राज्य में एक बड़ी हानि है। पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो पार्टी के लिए एक मजबूत बेस हो सकता था, मणिपुर में अस्थिरता के कारण निराश कर सकता है। इस अस्थिरता ने उस समर्थन को कम कर दिया है, जो अन्यथा इस क्षेत्र में एक भाजपा का एक नया गढ़ बन सकता था।
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 20 दिनों में 22 से भी ज्यादा मीडिया आउटलेट्स को इंटरव्यू दिए है।
हरियाणा एक और चुनौती पेश करता है, जहां किसान विरोध के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई एंटी-इनकंबेंसी लहर बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है। पर यहां चौंकाने वाले परिणाम भी संभव है, जनता एग्जिट पोल से पहले भी अलग गई है। पंजाब विशेष रूप से कठिन चुनाव क्षेत्र होने की उम्मीद है, जहां बीजेपी को लगभग पूरी तरह से हार का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि, बीजेपी के लिए सभी खबरें खराब नहीं हैं। पार्टी को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में बढ़त हासिल होने की उम्मीद है, जहां बीजेपी ऐतिहासिक रूप से कमजोर रही है। ओडिशा भी पार्टी के लिए एक संभावित लाभ वाला राज्य प्रतीत हो रहा है।
अन्य पार्टियां बीजेपी की कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं। राजस्थान में, कांग्रेस 10 सीटें जीत सकती है, जबकि उत्तर प्रदेश में, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 10 से अधिक सीटें हासिल कर सकती है, जबकि मायावती की संभावनाएं धुंधली लग रही हैं। बिहार में, तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) 11 से अधिक सीटें जीत सकती है, जिससे राज्य में पार्टी की पकड़ मजबूत हो जाएगी। 2014 में, कांग्रेस ने केवल 44 सीटें और उसके गठबंधन ने 59 सीटें जीती थीं, 2019 में कांग्रेस ने 52 सीटें और उसके गठबंधन ने 91 सीटें जीती थीं।
प्रियंका गांधी की सभाओं में भीड़ देखने को मिली है।
पश्चिम बंगाल आश्चर्यजनक नतीजे दे सकता है, लेकिन बीजेपी के संभावित आश्चर्यों के बावजूद अपनी बुनियाद बनाए रखने की संभावना है। इस बीच, पंजाब में आप, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा होने की उम्मीद है, जिससे बीजेपी के लिए संभावनाएं बहुत कम बचती है।हालांकि बीजेपी अपने 400 सीटों के लक्ष्य से चूक सकती है, लेकिन उसके सरकार से बाहर हो जाने की बेहद कम संभावनाएं है, उसका राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव बना हुआ है। भाजपा का प्रदर्शन कई महत्वपूर्ण राज्यों जैसे कर्नाटक और पूर्वोत्तर में हानियों को कम करने और दक्षिण और ओडिशा में संभावित लाभों को भुनाने पर निर्भर करेगा।
इस बीच, क्या विपक्ष बीजेपी की कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं? कांग्रेस और इंडिया गठबंधन कितनी मजबूती से चुनाव लड़ पाया है, किन शर्तो पे साथ रह सकेगा और क्या वक्त पड़ने पर और दलों को अपने साथ जोड़ पाएगा ये देखने वाला होगा। पुराने घट जोड़ की सरकारों का क्या हुआ था ये देश जनता है।
हाल के विश्लेषण में बीजेपी के सहयोगियों के साथ एनडीए के समर्थन से सरकार बनाने की संभावना है। दूसरी ओर, कांग्रेस और उसके सहयोगी 220 सीटों तक पहुंच सकते हैं, लेकिन सत्ता से दूर रहेंगे। अंतिम परिणाम अभी भी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रमुख राज्यों में मतदाता के वोट द्वारा प्रभावित हो सकते हैं, जो 50 सीटों तक के बदलाव ला सकते है और दिग्गजों के राजनीतिक करियर को बना या बिगाड़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल को दिए साक्षात्कार में बताया कि उनके घर के आसपास कई मुसलमान पड़ोसी थे जिनसे उनके दोस्ताना संबंध थे। उन्होंने कहा कि ईद के दिन उनके घर में खाना नहीं बनता था क्योंकि पड़ोसी मुसलमान दोस्त उनके लिए खाना लाते थे, जिसे मोदी बड़े चाव से खाते थे। उन्होंने यह भी बताया कि ताजियों के दिनों में उनके यहाँ एक परंपरा थी जिसमें ताजियों के नीचे से निकलने की पूजा जैसी होती थी। मोदी ने रिपोर्टर से कहा कि उनकी मुसलमानों के प्रति किसी भी तरह की नकारात्मक भावना नहीं है।
कुछ दिन पहले ही उन्होंने एक और टीवी पत्रकार से कहा था कि जिस दिन वह हिंदू-मुसलमान को अलग-अलग करने की बात करने लग जाएंगे, उस दिन उन्हें राजनीति में रहने का अधिकार नहीं रहेगा।
देश की लोकसभा के गठन के लिए 2 चरण का मतदान हो चुका है। यह देश के भविष्य का चुनाव है। इस चुनाव का इतिहास देखा जाए तो राजनीतिक दल सिर्फ मतदाता को ठगने के लिए मोहक प्रचार सामग्री तैयार करते है। वायदों पर कोई खरा नहीं उतरता। गरीबी और आर्थिक विषमता चारो ओर दिखाई देती है। चुनाव में कालेधन और वायदा खिलाफी का प्रभाव इतना है कि सविधान निष्प्रभावी दिखाई देता है।
कोई सरकार, चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट चुनाव के समय जारी किए जाने वाले राजनीतिक दलों के संकल्प पत्रों, न्याय पत्रों या सीधे सीधे घोषणापत्रों को लागू करने को वैधानिक रूप से अनिवार्य बनाने को तैयार नही है। क्यों नही इन चुनावी घोषणापत्र को लागू करना राजनीतिक दलों की मान्यता से जोड़ा जाता है। अगर राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र लागू नहीं करते तो उनकी मान्यता रद्द की जाना चाहिए। जैसे कि किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को दो वर्ष का कारावास होने पर वो स्वत अयोग्य घोषित हो जाता है। इसी तरह अपने चुनावी वायदे पूरे न करने वाले राजनीतिक दल की मान्यता रद्द होना चाहिए।
चुनाव आयोग के अधीन एक स्वतंत्र निकाय को चुनावी वायदे पूरे करने के मुद्दे पर समीक्षा का जिम्मा सौंपा जाए। इस निकाय की रिपोर्ट पर राजनीतिक दल की मान्यता रद्द की जाए। नोटा को राइट टू रिजेक्ट का दर्जा भी दिया जाए। चुनाव के लिए मान्यता प्राप्त दलों को चुनाव आयोग के जरिए फंडिंग की व्यवस्था की जाए। राजनीतिक दलों को काले धन की आपूर्ति के सारे रास्ते बंद किए जाए।
अभी चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों की संपत्ति का विवरण लिया जाता है और हर पांच साल में बेतहाशा बढ़ती संपत्ति का स्रोत नही पूछा जाता। तब ईडी और सीबीआई क्यों हरकत में नही आती। अपने नामांकन के साथ संपत्ति का विवरण दाखिल करने वाले प्रत्याशियों की संपत्ति की जांच लोकपाल, आयकर विभाग को सौंपी जाए। हर निर्वाचित प्रतिनिधि पेंशन लेता है और अपने सेवाकाल में तमाम सुविधाएं लेकर लोकसेवक ही कहलाता है तो क्यों नही उसकी जवाबदेही तय की जाए। उसे लगातार भ्रष्टाचार निरोधक कानून की निगरानी में रखा जाए।
भारत देश में भ्रष्टाचार की रोकथाम के बंदोबस्तों पर इतना ढीला रवैया अपनाया जाता रहा है कि लोग दशकों इंतजार ने बिता देते है। सन साठ के दशक में लोकपाल की अवधारणा को उस समय के कानून मंत्री अशोक सेन ने प्रस्तुत किया था। कानून विशेषज्ञ लक्ष्मी मल सिंघवी ने लोकपाल शब्द प्रस्तुत किया। सन 1966 में मोरार जी भाई देसाई की अध्यक्षता में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने के लिए किसी निकाय की स्थापना का सुझाव दिया था।लेकिन 2011में जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद वर्ष 2013 में संसद में लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पारित किया जा सका और पहली जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने उसे मंजूरी दी।
राजस्थान में अलग-अलग एनफोर्समेंट एजेंसियों ने मार्च महीने की शुरुआत से अब तक नशीली दवाओं, शराब, कीमती धातुओं, मुफ्त बांटी जाने वाली वस्तुओं (फ्रीबीज) और अवैध नकद राशि के रूप में लगभग 904.32 करोड़ रुपये कीमत की जब्तियां की हैं। निर्वाचन विभाग के निर्देश पर लोकसभा आम चुनाव-2024 के मद्देनजर आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद 16 मार्च से अब तक एजेंसियों द्वारा पकड़ी गई वस्तुओं की कीमत 806.18 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्री प्रवीण गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में अलग-अलग एजेंसियां चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से संदिग्ध वस्तुओं और धन के अवैध उपयोग पर कड़ी निगरानी कर रही हैं। इसी क्रम में प्रदेश भर में लगातार जब्ती की कार्रवाई की जा रही हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि 1 मार्च से अब तक राजस्थान में 3 जिलों में 40-40 करोड़ रूपये से अधिक, 10 जिलों में 30-30 करोड़ रुपये और 13 जिलों में 20-20 करोड़ रुपये मूल्य की संदिग्ध वस्तुएं और नकदी जब्त की गई है।
श्री गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में अलग-अलग एजेंसियों की ओर से प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, 1 मार्च, 2024 से अब तक 39.46 करोड़ रुपये से अधिक नकद, 130.81 करोड़ रुपये मूल्य की ड्रग्स, 44.86 करोड़ रुपये कीमत की शराब और 51.38 करोड़ रुपये मूल्य की सोना-चांदी जैसी कीमती धातुओं की जब्ती की गई है। साथ ही, 636.85 करोड़ रुपये कीमत की अन्य सामग्री तथा 94 लाख रुपये से अधिक कीमत की मुफ्त वितरण की वस्तुएं (फ्रीबीज) भी जब्त की गई हैं।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि आचार संहिता लागू होने के बाद 16 मार्च, 2024 से अब तक 38.51 करोड़ रुपये से अधिक नकद, 83.92 करोड़ रुपये मूल्य की ड्रग्स, 38.87 करोड़ रुपये कीमत की शराब और 43.51 करोड़ रुपये मूल्य की सोना-चांदी जैसी कीमती धातुओं की जब्ती की गई है। साथ ही, 600.62 करोड़ रुपये कीमत की अन्य सामग्री तथा 74 लाख रुपये से अधिक कीमत की मुफ्त वितरण की वस्तुएं (फ्रीबीज) भी जब्त की गई हैं।
इन संदिग्ध वस्तुओं के अवैध परिवहन पर कार्रवाई करने वाली कार्यकारी एजेंसियों में राज्य पुलिस, राज्य एक्साइज, नारकोटिक्स विभाग एवं आयकर विभाग प्रमुख हैं। इन जांच एवं निगरानी एजेंसियों और विभागों द्वारा प्रदेश भर में कड़ी निगरानी रखी जा रही है और किसी भी संदेहास्पद मामले पर नियमानुसार कार्रवाई की जा रही है।
राजस्थान में लोकसभा चुनाव को लेकर केवल सियासत ही नहीं सट्टा बाजार में हलचल मची हुई है। लोकसभा चुनाव को लेकर फलोदी सट्टा बाजार एक्टिव हो गया है। फलोदी सट्टा बाजार में लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवार की जीत और हार पर सट्टा लगाया जाता है। ऐसा देखा गया है कि फलोदी सट्टा बाजार में उम्मीदवारों पर जो सट्टा लगाया जाता है उसमें कई बार उम्मीदवारों के जीत और हार के संकेत मिलते हैं।
कोटा-बूंदी लोकसभा सीट पर बीजेपी की ओर से ओम बिरला मैदान में हैं। तो वहीं कांग्रेस की ओर से प्रहलाद गुंजल चुनावी मैदान में बिरला को चुनौती दे रहे हैं। चूकी प्रहलाद गुंजल सालों से बीजेपी में थे और चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें कोटा सीट से टिकट दिया इसके बाद कोटा सीट पर चुनाव दिलचस्प हो गया है। बताया जा रहा है कि बीजेपी उम्मीदवार ओम बिरला का भाव जहां 70 पैसे हैं तो वहीं प्रहलाद गुंजल का भाव 75 पैसे है। यानी दोनों के बीच का अंतर काफी कम है। यानी फलोदी सट्टा बाजार के हिसाब से दोनों के बीच कड़ी टक्कर है। वैसे ओम बिरला कुछ अंतर से आगे हैं लेकिन प्रहलाद गुंजल भी पीछे नहीं हैं। यानी यहां से किसकी जीत होगी अभी तय कर पाना मुश्किल है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो ओम बिरला के सामने सत्ता विरोधी खेमे को रोकने का कोई समाधान नहीं नजर आ रहा है। ओम बिरला पर स्थानीय लोग वादा न पूरा करने का आरोप भी लगा रहे हैं। उन्हें कोटा एयरपोर्ट के मुद्दे पर भी घेरा जा रहा है। जिसके लिए वह काफी समय से वादा कर रहे हैं। हालांकि, ओम बिरला के लिए मजबूत स्थिति इस वजह से माना जा रहा है कि कोटा RSS का गढ़ माना जाता है। वहीं राम मंदिर का मुद्दा और पीएम मोदी का नाम बिरला को मजबूत स्थिति में लाता है और इसका फायदा उन्हें मिल सकता है। प्रहलाद गुंजल के लिए यहां सचिन पायलट फैक्टर भी हैं जो उनके साथ है। सचिन पायलट फैक्टर अगर काम करता है तो प्रहलाद गुंजल को ज्यादा फायदा मिल सकता है।
जयपुर। राजस्थान में 26 अप्रैल को होने वाले द्वितीय दौर के लोकसभा चुनाव में चित्तौड़गढ़ से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री सी पी जोशी एवम भीलवाड़ा से कांग्रेस के सीनियर लीडर और राजस्थान विधान सभा के पूर्व स्पीकर सहित केंद्रीय राज्य में मंत्री रहें डा.सी पी जोशी चुनाव लड़ रहे हैं।
दोनों ही सुलझे विचारों के, सर्वमान्य नेता, ब्राह्मण कुल गौरव हैं, जिन पर ब्राह्मण समाज को गर्व है। ऐसे ब्राह्मण रत्न लोकसभा में पहुंचने ही चाहिए। इसलिए राजस्थान ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री केसरी चंद भंवरलाल शर्मा, कार्यवाहक अध्यक्ष श्री दीक्षांत शर्मा, प्रमुख महामंत्री श्री मधुसूदन शर्मा, महिला प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती अरुणा गौड़ और वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडवोकेट गीता शर्मा और प्रदेश प्रमुख महामंत्री डा. सुमन शर्मा ने एक संयुक्त बयान जारी कर चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा से दोनों सी पी जोशी को भारी बहुमत से जितने की अपील ब्राह्मण समाज से की है।
राजस्थान में पहले चरण की सभी 12 सीटों पर मतदान हो गया है। मतदान 57.87 फीसदी हुआ है। राजस्थान में ये धारणा है कि विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो राज्य सरकार को नुकसान हो है और लोकसभा में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
राजनेतिक विश्लेषकों का मानना है की ज्यादा वोटिंग मोदी वेव और स्विंग की होती है जिससे भाजपा को फायदा होता है, वही काम वोट में कांग्रेस के वोट तो तटस्थ रहते है पर भाजपा को मिलने वाले ज्यादा वोट नही मिल पाते। 19 अप्रैल को डले वोट में सुबह तो काफी भीड़ दिखी पर फिर वोटिंग बूथ खाली से हो गए। गर्मी भी एक कारण थी। एक वोट रमेश शर्मा कहते है, “भाजपा वोटर गर्मी से नही आ रहे, सबको लग रहा है मोदी तो आयेंगे ही, मेरा एक वोट से क्या होगा”.
2009 में कांग्रेस का राजस्थान में वोट शेयर 47.2 और भाजपा का 36.6 फीसदी था। कांग्रेस ने तब यहां 20 सीटें जीती और कांग्रेस ने चार। वही 2014 में मोदी की लहर के कारण प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर करीब 20 फीसदी तक बढ़ गया। भाजपा के लिए राजस्थान के 55.6 फीसदी वोटर्स ने मतदान किया। जबकि कांग्रेस का वोट 2009 की तुलना में 17 फीसदी गिरकर 30.7 फीसदी पर आ गया। पूरी 25 सीटें भाजपा की झोली में गईं।
पिछले 2019 की लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों का वोट शेयर बढ़ा। भाजपा को 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 58.4 फीसदी वोट मिले वहीं कांग्रेस को 4 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 34.2 प्रतिशत वोट दिए गए। पर वोट शेयर के बीच बड़ा अंतर होने के कारण भाजपा को दूसरी बार फिर 25 सीटों पर जीत मिली।
2023 के विधानसभा चुनाव में मालवीय नगर में एक वोटर आरती ने तब बताया था की “राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा बड़िया है। कांग्रेस से स्कीम का लाभ मिलता है और मोदी से देश सही चलता है।”
वही इस सबके बीच भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह आज राजस्थान और उत्तर प्रदेश के चुनावी दौरे पर रहेंगे। वह इन दोनों राज्यों में भाजपा की तीन जनसभाओं को संबोधित करेंगे। शाह सबसे पहले राजस्थान पहुंचेंगे और भीलवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में जहाजपुर के शक्करगढ़ में भाजपा की जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह कोटा के सीएडी ग्राउंड में आयोजित जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के मथुरा पहुंचेंगे और वृंदावन में शाम चार बजे प्रियाकांत जू मंदिर ग्राउंड में पार्टी की जनसभा को संबोधित करेंगे।
आखरी चार चुनावों से ऐसा ही देखने को मिल रहा है की वोट प्रतिशत यदि 3 से 6 फीसदी तक बड़ता है तो फायदा भाजपा को मिलता है वहीं अगर वोट प्रतिशत कम होता है तो भाजपा को मिलने वाला नया और स्विंग वोट काम होता है जिससे कांग्रेस की वापसी की संभावना उत्पन होती है।
राजस्थान में आम चुनाव 2024 के लिए मतदान 19 और 26 अप्रैल को होगा। जयपुर शहर 19 अप्रैल को वोट करेगा। जयपुर शहर से प्रताप सिंह खचरियावास (कांग्रेस) और मंजू शर्मा (भाजपा) से सांसद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। प्रताप सिंह खाचरियावास कांग्रेस के न्याय पत्र, कांग्रेस की गारंटी और श्याम बाबा के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि मंजू शर्मा मोदी के नाम और भाजपा की 10 वर्षीय सरकार के कामों पर चुनाव लड़ रही हैं। मंजू शर्मा का राजनीतिक मुद्दा मोदी की गारंटी और विजन 2047 है।
मतदान सुबह 7 बजे से शुरू होगा। पिछले 2019 जयपुर शहर में हुए चुनाव में भाजपा के रामचरण बोहरा ने कांग्रेस से लगभग दोगुने वोट प्राप्त किए और जीत दर्ज की थी। अबकी बार उनकी जगह मंजू शर्मा को टिकट मिला है। उन्होंने कहा भी है की बोहरा का टिकट कटा नही बल्कि बदला है।
लोगो के बीच ये बात भी चल रही है की जहा पूरे शहर में सिर्फ मोदी के पोस्टर है जिनमे मंजू शर्मा की फोटो भी नही है वही प्रताप सिंह का आखरी के दिन छोड़ कर प्रचार काम दिखा। पोस्टर बैनर भी भाजपा के मुकाबले बेहद कम दिखे।दोनो उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 19 अप्रैल को ईवीएम में कैद हो जाएगा।
भारत एक विभिन्नताओं वाला देश है। अनेकता में एकता ही इसकी पहचान है। यहां शादी, तलाक़, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं। हालांकि, देश की आज़ादी के बाद से समान नागरिक संहिता या यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) की मांग चलती रही है। इसके तहत इकलौता क़ानून होगा जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह नहीं की जाएगी। यहां तक कि संविधान कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे क़ानून मुहैया कराने के ‘प्रयास’ करने चाहिए।
लेकिन एक समान क़ानून की आलोचना देश का हिंदू बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्पसंख्यक दोनों समाज करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में कहें तो यह एक ‘डेड लेटर’ है। बीजेपी शासित उत्तराखंड की विधानसभा ने राज्य में यूसीसी लागू करने के लिए लाए गए विधेयक को पारित कर दिया है। राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन जाएगा। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश और राजस्थान UCC पर चर्चा कर रहे हैं।
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना, कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करना और UCC को लागू करना बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहे हैं। अयोध्या में मंदिर का वादा पूरा हुआ है और हाल में प्रधानमंत्री जी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जा चुकी है। कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर दी गई है और CAA लागू हो गया है तो अब चर्चा UCC पर है। हिंदूवादी संगठन समान नागरिक संहिता की मांग मुस्लिम पर्सनल लॉ के कथित ‘पिछड़े’ क़ानूनों का हवाला देकर उठाते रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तीन तलाक़ वैध था जिसके तहत मुसलमान तुरंत तलाक़ दे सकते थे लेकिन मोदी सरकार ने साल 2019 में इसे आपराधिक बना दिया।
बीजेपी का चुनावी घोषणा पत्र कहता है कि ‘जब तक भारत समान नागरिक संहिता नहीं अपना लेता है तब तक लैंगिक समानता नहीं हो सकती है।’ भारत में 90% जोड़े शादी के बाद पति के परिवार के साथ रहते हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘असलियत बहुत ज़्यादा जटिल है.’ दूसरे शब्दों में कहें तो UCC बनाने के विचार ने उस पिटारे को खोल दिया है जिसके देश के हिंदू बहुमत के लिए भी अनपेक्षित नतीजे होंगे जिसका प्रतिनिधित्व करने का दावा बीजेपी करती है। “UCC मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं की सामाजिक ज़िंदगी को प्रभावित करेगी.”