राहुल गांधी ने अमेरिका में फिर भारत की छवि पर उठाए सवाल, चुनाव आयोग को बताया ‘कंप्रोमाइज़्ड’

पूर्व में भी कर चुके हैं देश के बाहर विवादित बयान, क्या यह एक पैटर्न बनता जा रहा है?

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने अप्रैल 2025 में अमेरिका के बोस्टन में भारतीय प्रवासी समुदाय को संबोधित करते हुए एक बार फिर विवाद को जन्म दे दिया। उन्होंने न केवल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए, बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित अनियमितताओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र में एक “statistically improbable” यानी सांख्यिक रूप से असंभव मतदाता वृद्धि देखी गई, जिससे संकेत मिलता है कि चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को बीजेपी से अधिक वोट मिले, फिर भी हार हुई, जो स्पष्ट रूप से हेरफेर का संकेत देता है।

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भाजपा ने राहुल गांधी के इन बयानों को देशविरोधी करार देते हुए उनकी कड़ी आलोचना की। अमित शाह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि यह बयान न केवल भारत की संस्थाओं को बदनाम करते हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर देश की छवि को धूमिल करने का प्रयास है। चुनाव आयोग ने भी राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची को विशेष सारांश पुनरीक्षण (SSR) के तहत नियमित प्रक्रिया में अद्यतन किया गया, जिसमें केवल 89 आपत्तियाँ प्राप्त हुईं, जबकि महाराष्ट्र में 1.38 करोड़ से अधिक बूथ स्तर एजेंट नियुक्त हैं।

कांग्रेस ने राहुल गांधी का बचाव करते हुए कहा कि वह चुनावी पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंताओं को उजागर कर रहे थे, जो एक लोकतांत्रिक नेता का दायित्व है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह “चिंता” केवल विदेश दौरे के समय ही क्यों उभरती है?

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यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेशी भूमि पर भारत की संवैधानिक संस्थाओं या सामाजिक ढांचे पर टिप्पणी की हो। सितंबर 2024 की अमेरिका यात्रा के दौरान भी उन्होंने आरएसएस की आलोचना की थी और विवादास्पद अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाक़ात की थी। उस समय भी भाजपा ने उन्हें भारत की छवि धूमिल करने का दोषी ठहराया था।

इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी विदेश में दिए गए अपने बयानों के जरिए बार-बार एक खास नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि न केवल राजनीतिक रूप से संदिग्ध है, बल्कि देशहित में भी नहीं कहा जा सकता। आलोचकों का मानना है कि एक जिम्मेदार विपक्षी नेता को विदेशी धरती पर भारत की संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करने के बजाय, देश में लोकतांत्रिक संवाद को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए।

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