“कभी शांत था यह गांव, आज राख में तब्दील है।”
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का वह छोटा सा गांव अब इतिहास में दर्ज हो गया है : लेकिन किसी गौरव के लिए नहीं, बल्कि एक भयानक त्रासदी के लिए। वक़्फ़ बिल के पारित होने के बाद, सोशल मीडिया पर फैलाई गई झूठी खबरों और अफवाहों ने इस गांव की किस्मत को ऐसा मोड़ दे दिया कि यहां की ज़िंदगी अब कभी पहले जैसी नहीं होगी।
व्हाट्सऐप ग्रुप्स, फर्जी यूट्यूब वीडियो और सोशल मीडिया के ज़रिए यह झूठ फैलाया गया कि मोदी सरकार मुसलमानों की ज़मीनें छीनने वाली है। इसी अफवाह ने आग का काम किया, और नतीजा हुआ: हिंसा, लूटपाट और नृशंस हत्याएं।
गांव के कई घरों से हिंदुओं को बाहर घसीटकर बेरहमी से मार डाला गया। मंदिरों को लूटा गया, मूर्तियाँ तोड़ी गईं, और श्रद्धा का केंद्र बन चुकी जगहों को मलबे में बदल दिया गया। हिंदुओं की दुकानों में आग लगा दी गई, और कई घर राख हो गए।
टारगेट थे वो, जो बदलाव चाहते थे
जिस्ट नामक एक साहसी यूट्यूब न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर सोनल जी, इस संकट की घड़ी में ज़मीन पर उतरीं। जिस समय बड़े मीडिया संस्थान चुप थे, उन्होंने न केवल पीड़ितों से बात की बल्कि सच को दुनिया के सामने लाकर रख दिया।
उनकी वीडियो रिपोर्टिंग में एक दिल दहलाने वाली बात सामने आई — जिन इलाकों में सबसे ज़्यादा हिंसा हुई, वहां की दीवारों पर भाजपा के कमल का चिह्न, झंडे, और दीवार लेखन साफ दिखाई देते हैं। यह इशारा करता है कि ये हमले योजनाबद्ध थे — खास उन लोगों के ख़िलाफ़ जो बंगाल में बदलाव के लिए भाजपा के समर्थन में खड़े थे।
“हम राष्ट्रपति शासन और BSF का कैम्प चाहते हैं। स्कूल मे तो हम शरण लिए हुए हैं,” — एक रोती हुई महिला ने सोनल जी से कहा।
हज़ारों लोग अब स्थानीय स्कूलों और सार्वजनिक भवनों में शरण लिए हुए हैं। भोजन, दवाइयाँ, और मानसिक सहायता — सब कुछ ज़रूरत से कम है। कई बच्चे अब भी सदमे में हैं, और उनके माता-पिता की आँखों में डर की परछाइयाँ साफ दिखती हैं।
सोनल जी ने कुछ मुस्लिम युवाओं से भी बात की। उन्होंने बताया कि मस्जिदों से मोलवियों ने हिंसा से दूर रहने की अपील की थी, लेकिन व्हाट्सऐप पर फैली झूठी बातें, जैसे “मोदी सरकार मुसलमानों की ज़मीनें छीन लेगी,” ने माहौल को जहरीला बना दिया।
अब भाजपा द्वारा एक सशक्त जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जिसमें वक़्फ़ बिल की असल सच्चाई बताई जा रही है। अफवाहों को काटने और लोगों को सच्चाई बताने की पूरी कोशिश की जा रही है और यह सराहनीय है।
लेकिन अफ़सोस मुर्शिदाबाद के इस गांव के लिए यह प्रयास देर से आया। जिनके घर जल चुके हैं, जिनकी ज़िंदगियाँ उजड़ चुकी हैं, उनके लिए यह घाव कभी नहीं भर पाएंगे।
यह केवल एक गांव की कहानी नहीं है, यह एक चेतावनी है।
अगर हम अफवाहों को रोकने में नाकाम रहे, अगर हमने इस सोशल मीडिया के ज़हर को न रोका, तो अगला मुर्शिदाबाद कौन होगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
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