जब भी हम किसी व्यक्ति को “चुगली करने वाला” कहना चाहते हैं, तो मजाक में या तंज में हम अकसर कहते हैं, “कहीं तुम नारद मुनि तो नहीं?” या “नारद मत बनो”। यह संवाद आम हो चुका है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिसे हम उपहास में लेते हैं, वह असल में एक महान ऋषि और देवताओं के प्रमुख दूत हैं, देवर्षि नारद?
नारद मुनि थे विश्व के पहले पत्रकार थे। ऋषि नारद को ‘देवों के संवादवाहक’ के रूप में जाना जाता है। वे तीनों लोकों में स्वतंत्र रूप से यात्रा करते थे, स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल, और जो कुछ उन्होंने देखा, सुना, जाना, वह निर्भीक रूप से सही व्यक्ति तक पहुँचाया। यही तो पत्रकारिता का मूल है: सत्य जानना, तथ्य जुटाना, और उसे निष्पक्ष रूप से संबंधित पक्ष तक पहुँचाना।
नारद मुनि ना केवल देवताओं को घटनाओं की जानकारी देते थे, बल्कि कई बार उन्होंने प्रभावशाली नीतिगत निर्णयों का मार्गदर्शन भी किया, जैसे:
- प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु के कथा में नारद ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने गर्भ में ही प्रह्लाद को विष्णु-भक्ति का बीज दिया।
- रामायण में नारद के संवादों के माध्यम से भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
- महाभारत में भी उन्होंने कई बार धर्म के मार्ग पर संकेत देकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह धारणा कि नारद लड़वाने का काम करते थे बहुत सतही और गलत है। उन्होंने जो कहा वह सूचना थी गुप्तचरी नहीं। उनका उद्देश्य हमेशा था कि:
- सत्य सामने आए
- धर्म की रक्षा हो
- देवताओं या मानवों को चेतावनी मिल सके
उदाहरण के लिए जब उन्होंने किसी असुर की योजनाओं की जानकारी देवताओं को दी वह चुगली नहीं थी बल्कि सुरक्षा चेतावनी थी।
लेकिन आज की आम भाषा में नारद मत बनो कहना एक तरह से धार्मिक और सांस्कृतिक अवमानना है।
नारद को भड़काने वाला मान लेना भी गलत है। वे ऐसी जानकारी साझा करते थे जो पहले से चल रही समस्याओं को सतह पर लाती थी।
ध्यान दीजिए, सत्य को उजागर करना उकसाना नहीं होता बल्कि जिम्मेदार चेतावनी देना होता है।
हमने अनजाने में नारद जैसे ऋषि को मजाक और अपमान का पात्र बना दिया है। नारद मत बनो, हर जगह टांग अड़ाते हो, सबको भड़काते हो, ये वाक्य अब आम हैं, परन्तु ये एक पूजनीय देवता का अनादर हैं। हमें यह समझना होगा कि जो व्यक्ति ज्ञान, संगीत, और संवाद के प्रतीक हैं, उन्हें अपमानजनक रूप में चित्रित करना ना केवल अनुचित, बल्कि सांस्कृतिक रूप से नुकसानदेह भी है।

टीवी धारावाहिकों और फिल्मों ने भी नारद जी को कई बार हास्य पात्र की तरह प्रस्तुत किया। हाथ में वीणा, नारायण नारायण, कहकर आते और सबको उलझा कर चले जाते। यह चित्रण आधा-सच और गलत-संदेश देता है। वास्तव में नारद जी वेद, उपनिषद, भक्ति-योग के प्रचारक थे और उन्होंने नारद भक्ति सूत्र जैसे ग्रंथ की रचना की, जो आज भी भक्ति मार्ग का मूल आधार है।
अब समय आ गया है कि हम नारद जी को पहले संवाददाता, पहले संचार विशेषज्ञ, और धार्मिक चेतना के अग्रदूत के रूप में सम्मान दें। नारद मत बनो जैसे वाक्यों को हम अपनी भाषा से हटाएँ और उनके स्थान पर सत्य का संचार करो जैसे विचारों को प्रोत्साहित करें।
क्योंकि नारद न सिर्फ़ देवता थे, वो सत्यों के सेतु थे, जो हमें धर्म, विवेक और चेतना की ओर ले जाते हैं। उनका सम्मान करना हमारी संस्कृति की गरिमा है।
नारायण नारायण।
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