कितने भी सबूत दे लो, कांग्रेस के लिए काफी नहीं

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम के बाद सीमा पर स्थिति थोड़ी स्थिर हुई है, लेकिन कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने पहलगाम घटना पर अपने बेवजह और असंवेदनशील बयान से नया विवाद खड़ा कर दिया है। जब देश सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है, तो राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर क्षेत्र के सांसद ने इस गंभीर मुद्दे को हल्के में लिया।

भास्कर की खबर के अनुसार बेनीवाल ने अपनी ताजा टिप्पणी में पर्यटकों की हत्या के घटनाक्रम पे सवाल उठाए है, जिसमें उनका उनके धर्म पूछने के बाद हत्या कर दी गई थी। उनका तर्क है कि ऐसा कोई सवाल पूछा गया इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। क्या सच में, बेनीवाल जी, कितने सबूत चाहिए?

इस घटना में अनेक लोगों को उसकी पत्नी के सामने धर्म पूछकर मारा गया, और कुछ मामलों में तो लोगों को नंगा करके धर्म की जांच भी की गई। क्या इन घटनाओं को नकारना उचित है, जब इतने सारे लोग इसी तरह मारे गए? क्या यह पर्याप्त सबूत नहीं है, बेनीवाल जी? क्या विधवाएं गलत बोल रही है? बेनीवाल यह तक कह रहे हैं कि मोदी को इस घटना के बारे में बताना वाला बयान भी गलत है! 

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क्या यह वाकई उचित है? क्या उन्हें यह नहीं समझना चाहिए कि जब सेना ऑपरेशन करती है, तो क्या उन्हें यह पता होता है कि कैमरा लेकर सबूत भी जुटाने होंगे? कांग्रेस का एकमात्र काम है, हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेना और जनता में भ्रम पैदा करना। ऑपरेशन सिंदूर में सेना ने दुश्मन को माकूल जवाब दिया, बलिदान भी दिया, लेकिन फिर भी कुछ विपक्षी नेताओं के लिए सबूत जुटाना जरूरी था जो उन्होंने जुटाया।

बेनीवाल के बयान सिर्फ इस घटना के प्रति असंवेदनशीलता ही नहीं, बल्कि देश में सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ कार्रवाई को भी कमजोर करते हैं। कांग्रेस के नेताओं के लिए हर मुद्दे पर सवाल उठाना एक बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है। क्या कांग्रेस इन घटनाओं को नकारकर यह संदेश दे रही है कि धर्म के आधार पर हत्या कोई बड़ी बात नहीं है? राहुल गांधी कहते है हम सरकार के साथ खड़े है, ये साथ खड़े है आप?

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पाकिस्तान को कुछ कहने की जरूरत नहीं है, हमारे खुद कुछ नेता ही बातों को तोड़ मरोड़ के पेश करने के लिए काफी है। यह देश के अंदर ही असहमति और भ्रम फैलाने का काम करता है। हमें इस तरह के बयानों का विरोध करना चाहिए और उन लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए जो इन हिंसक घटनाओं का शिकार हुए हैं।

यह असंवेदनशीलता है। इस घटना को केवल एक सुरक्षा चूक कहकर, यह कहना कि यह सांप्रदायिक हिंसा के बढ़ते खतरे को नहीं दिखाता, उन पीड़ितों के साथ अन्याय है। हमें अब और बहस नहीं चाहिए, हमें कार्रवाई, जिम्मेदारी और न्याय चाहिए थी उन लोगों के लिए जिनकी जान इतनी बेरहमी से ली गई। और ऑपरेशन सिंदूर में वो हासिल हुई।

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बेनीवाल के बयान भारतीय राजनीति में अब भी मौजूद अस्वीकृति की जहरीली संस्कृति को दर्शाते हैं। यह समय है कि कांग्रेस अपनी सोच, नेतृत्व और अपनी जिम्मेदारी की पुनः मूल्यांकन करे। एक दुनिया में जहां हर सबूत, हर जीवित गवाह की कहानी और हर पीड़ित की प्रार्थना मायने रखती है, यह दुखद है कि एक जन प्रतिनिधि जमीन पर हो रही वास्तविकता से इतना दूर है।

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