नई दिल्ली, 20 अप्रैल 2025: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह है छात्र संघ चुनावों का अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होना। चुनाव समिति ने हिंसा, तोड़फोड़ और असुरक्षा के माहौल का हवाला देते हुए यह कड़ा फैसला लिया है। जेएनयू, जो लंबे समय से वामपंथी विचारधारा का गढ़ रहा है, में यह घटना वामपंथी संगठनों के लिए एक बड़ा झटका मानी जा रही है।
चुनाव समिति ने अपनी अधिसूचना में कहा, “पिछले दो दिनों में हुई हिंसा और सुरक्षा में बड़ी चूक के कारण चुनाव प्रक्रिया को रोकना पड़ रहा है। शत्रुता, भय और असुरक्षा का माहौल है, जिसके चलते उम्मीदवारों की अंतिम सूची भी जारी नहीं की जा सकी है।” समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव तभी शुरू होंगे, जब विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठन समिति के सदस्यों की सुरक्षा की गारंटी देंगे।
हिंसा की जड़ में क्या?
सूत्रों के अनुसार, चुनाव समिति के कार्यालय में नामांकन वापसी की समय सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन-डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसए-डीएसएफ) गठबंधन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) पर पथराव, बैरिकेड तोड़ने और समिति के सदस्यों को धमकाने का आरोप लगाया है। वहीं, एबीवीपी ने जवाबी आरोप लगाते हुए कहा कि चुनाव समिति “वामपंथी संगठनों की कठपुतली” बन गई है और वामपंथी समूह छात्रों के जनादेश से डरकर चुनाव प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं।
जेएनयू का इतिहास और वामपंथ का गढ़
जेएनयू लंबे समय से वामपंथी विचारधारा का केंद्र रहा है। 1970 के दशक से यह विश्वविद्यालय अपनी प्रगतिशील सोच और असहमति की संस्कृति के लिए जाना जाता है। साल 2015 में कन्हैया कुमार ने जेएनयू छात्र संघ का चुनाव जीतकर सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन हाल के वर्षों में वामपंथी और दक्षिणपंथी समूहों के बीच टकराव बढ़ा है। 2022 में रामनवमी के दौरान भी जेएनयू में हिंसक झड़पें हुई थीं, जब एबीवीपी और वामपंथी समूहों के बीच हॉस्टल में मांसाहारी भोजन परोसने को लेकर विवाद हुआ था।
छात्रों और संगठनों की प्रतिक्रिया
छात्रों का कहना है कि जेएनयू में पढ़ाई से ज्यादा राजनीति हावी हो गई है। एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह विश्वविद्यालय अब शिक्षा का केंद्र कम और राजनीतिक अड्डा ज्यादा बन गया है। हमें पढ़ाई की चिंता है, लेकिन हर बार चुनाव के समय हिंसा हो जाती है।” वहीं, कुछ छात्र संगठनों ने मांग की है कि जेएनयू को स्थायी रूप से बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यह “राष्ट्र-विरोधी विचारधाराओं का अड्डा” बन गया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेएनयू में बढ़ती हिंसा और अराजकता देश की व्यापक राजनीतिक ध्रुवीकरण को दर्शाती है। एक विशेषज्ञ ने कहा, “जेएनयू हमेशा से वैचारिक बहस का केंद्र रहा है, लेकिन अब यह बहस हिंसा में बदल रही है। यह न केवल विश्वविद्यालय के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय है।”
चुनाव समिति ने कहा है कि वह स्थिति की समीक्षा करेगी और सुरक्षा सुनिश्चित होने के बाद ही चुनाव प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाएगा। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर जेएनयू की छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या जेएनयू अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को वापस पा सकेगा, या यह वैचारिक संघर्ष का अखाड़ा बनकर रह जाएगा? यह सवाल हर किसी के मन में है।
हैरानी की बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। छात्रों का कहना है कि प्रशासन की निष्क्रियता ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।