हिंदू धर्म के विशाल और गहन साहित्यिक संग्रह में श्रुति ग्रंथों का स्थान सर्वोपरि है। ‘श्रुति’ का अर्थ है – “जो सुना गया है”। ये ग्रंथ ईश्वर द्वारा ऋषियों को श्रवण द्वारा प्राप्त हुए माने जाते हैं। ये न केवल हिंदू धर्म के सबसे पुराने और मूल ग्रंथ हैं, बल्कि वेदांत और भारतीय दर्शन की नींव भी इन्हीं ग्रंथों पर टिकी हुई है।
श्रुति ग्रंथों की विशेषता
श्रुति ग्रंथों को मानव-रचित नहीं माना जाता, बल्कि यह विश्वास है कि ऋषियों ने ध्यान और तपस्या के माध्यम से इन दिव्य वचनों को ‘श्रवण’ द्वारा प्राप्त किया और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से सुरक्षित रखा। यही कारण है कि इन्हें अनादि और अपौरुषेय (जिसका कोई मानव रचयिता न हो) कहा गया है।
श्रुति ग्रंथों का मुख्य भाग – चार वेद
हिंदू धर्म के श्रुति ग्रंथों में मुख्यतः चार वेद सम्मिलित हैं। इन वेदों को ‘ज्ञान का मूल स्रोत’ माना जाता है।
1. ऋग्वेद
सबसे प्राचीन वेद (लगभग 1500–1200 ई.पू.)
इसमें 1,028 सूक्त हैं जो विभिन्न देवताओं की स्तुति में रचे गए हैं – जैसे अग्नि, इंद्र, वरुण, सोम।
यह वेद ज्ञान और मंत्र का स्रोत है।
2. सामवेद
इसमें ऋग्वेद के मंत्रों को संगीतबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।
यज्ञों और अनुष्ठानों में गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की जड़ें भी इसी वेद से जुड़ी हैं।
3. यजुर्वेद
यह वेद कर्मकांडों और यज्ञ विधियों का विवरण देता है।
दो शाखाएं:
कृष्ण यजुर्वेद – मंत्र और गद्य एकसाथ।
शुक्ल यजुर्वेद – मंत्र और गद्य पृथक।
4. अथर्ववेद
घरेलू जीवन, चिकित्सा, जड़ी-बूटियाँ, तंत्र-मंत्र, और आयुर्वेद से संबंधित सूक्त।
यह वेद आम जनजीवन के साथ सीधा संवाद स्थापित करता है।
हर वेद के चार भाग
हर वेद में चार स्तर होते हैं, जो क्रमशः कर्म से ज्ञान की ओर बढ़ते हैं:
संहिता – मूल मंत्रों का संग्रह।
ब्राह्मण – यज्ञ और कर्मकांड की विधि।
आरण्यक – वनवासी तपस्वियों द्वारा चिंतन और दर्शन।
उपनिषद – तत्वज्ञान, आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष पर गहन विमर्श।
उपनिषद: श्रुति का दार्शनिक पक्ष
उपनिषदों को ‘वेदांत’ भी कहा जाता है क्योंकि वे वेदों के अंतिम भाग हैं। इनका विषय है:
आत्मा क्या है?
ब्रह्म (परमात्मा) क्या है?
मोक्ष कैसे प्राप्त करें?
कुछ प्रमुख उपनिषद:
ईशावास्य उपनिषद
केन उपनिषद
छांदोग्य उपनिषद
बृहदारण्यक उपनिषद
कठ उपनिषद
उपनिषदों की संख्या 108 से अधिक मानी जाती है, लेकिन 11 को प्रमुख और प्रामाणिक माना जाता है।
स्मृति: मानवीय अनुभव और परंपरा पर आधारित (जैसे मनुस्मृति, महाभारत)।
श्रुति का स्थान हिंदू धर्म में सर्वोपरि है – यह मूल है, बाकी सब व्याख्या।
श्रुति की मौखिक परंपरा: एक अद्भुत चमत्कार
वेदों को हजारों वर्षों तक मौखिक रूप से याद रखा गया, जिसमें उच्चारण की शुद्धता और छंद की संरचना अक्षुण्ण रही। यह कार्य विशेष पाठ विधियों द्वारा हुआ:
पदपाठ
क्रमपाठ
जटा पाठ
घन पाठ
यह अद्भुत स्मृति परंपरा विश्व की सबसे पुरानी और सबसे सटीक मौखिक परंपरा मानी जाती है।
निष्कर्ष
श्रुति ग्रंथ केवल धार्मिक पुस्तकें नहीं हैं – वे भारतीय संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, संगीत और जीवन दर्शन का मूल स्रोत हैं। इन ग्रंथों की दिव्यता और गहराई आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी हजारों वर्ष पूर्व थी।
श्रुति हमें सिखाती है कि ध्यान, ज्ञान और आत्मा के माध्यम से ईश्वर से सीधा संबंध स्थापित किया जा सकता है। यह केवल ग्रंथों का अध्ययन नहीं, बल्कि जीवन की साधना है।
हिंदू धर्म विश्व के सबसे प्राचीन और विविध धार्मिक परंपराओं में से एक है, जिसकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं। इस धर्म की गहराई और व्यापकता को समझने के लिए इसके पवित्र ग्रंथों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। हिंदू धर्म के ग्रंथ दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित हैं – श्रुति (जो सुनी गई) और स्मृति (जो स्मरण में रखी गई)। आइए इन ग्रंथों को विस्तार से समझें।
श्रुति ग्रंथ लिखे नहीं बल्कि ऋषियों द्वारा सुने गए और एक पीढ़ी ने दूसरी को बताया।
श्रुति ग्रंथ सबसे प्राचीन और दिव्य माने जाते हैं, जिन्हें ऋषियों ने ईश्वर की प्रेरणा से “सुना” और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से संजोया। इन ग्रंथों को सर्वोच्च सत्य का वाहक माना गया है।
वेद – चार मूल ग्रंथ
ऋग्वेद
सबसे प्राचीन वेद।
इसमें 1,028 सूक्त (स्तोत्र) हैं जो अग्नि, इंद्र, वरुण आदि देवताओं की स्तुति में हैं।
सामवेद
इसमें ऋग्वेद के मंत्रों को संगीतबद्ध किया गया है।
यह यज्ञों में गाया जाने वाला वेद है।
यजुर्वेद
यज्ञों में प्रयोग होने वाले कर्मकांड और मंत्रों का संग्रह।
यह वेद दो शाखाओं में विभाजित है – शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
अथर्ववेद
जीवन के व्यावहारिक पहलुओं से संबंधित – जड़ी-बूटियाँ, रोगों की चिकित्सा, तंत्र-मंत्र आदि।
इसमें सामाजिक और घरेलू जीवन की झलक मिलती है।
वेदों के अंग (प्रत्येक वेद में चार भाग)
संहिता – मूल मंत्र।
ब्राह्मण – यज्ञ-विधि और कर्मकांड की व्याख्या।
आरण्यक – तपस्वियों द्वारा जंगलों में किया गया चिंतन।
उपनिषद – आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष पर गहन दार्शनिक विचार।
2. स्मृति (स्मरण परंपरा के ग्रंथ)
स्मृति ग्रंथ मानव द्वारा रचित माने जाते हैं लेकिन फिर भी अत्यंत पवित्र और मार्गदर्शक हैं। इनमें धर्म, आचरण, कथा और भक्ति का समावेश होता है।
इतिहास ग्रंथ (महाकाव्य)
रामायण –
लेखक: महर्षि वाल्मीकि।
श्रीराम के जीवन, आदर्श, वनवास, रावण वध और अयोध्या वापसी की गाथा।
महाभारत –
लेखक: महर्षि वेदव्यास।
कौरव-पांडव युद्ध की कथा।
इसमें भगवद गीता शामिल है – भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया अमर उपदेश।
पुराण (18 मुख्य और कई उपपुराण)
पुराणों में सृष्टि, देवताओं की कथाएँ, अवतार, धर्म और भक्ति का वर्णन है।
प्रमुख पुराण:
भागवत पुराण (कृष्ण भक्ति पर केंद्रित)
विष्णु पुराण, शिव पुराण, मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत, आदि।
धर्मशास्त्र
जीवन के विभिन्न चरणों में धर्म, कर्तव्यों और आचार का निर्धारण।
प्रमुख ग्रंथ:
मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति।
3. वेदांग – वेदों के सहायक ग्रंथ
वेदों के गूढ़ ज्ञान को समझने के लिए इन 6 वेदांगों की रचना हुई:
शिक्षा (उच्चारण)
व्याकरण (संस्कृत भाषा का व्याकरण – जैसे पाणिनि का अष्टाध्यायी)
निरुक्त (शब्दों की व्याख्या)
छंद (वेदों की छंद रचना)
कल्प (यज्ञ की विधि)
ज्योतिष (गणना और काल निर्धारण)
4. दर्शन शास्त्र – भारतीय दर्शन के छह प्रमुख मत
हिंदू दर्शन की गहराई छह ‘आस्तिक’ (वेद मान्य) दर्शनों में व्यक्त की गई है:
न्याय – तर्क और प्रमाण पर आधारित।
वैशेषिक – पदार्थों और तत्वों का वर्गीकरण।
सांख्य – प्रकृति और पुरुष का द्वैत।
योग – पतंजलि योगसूत्र आधारित आत्मसाधना।
पूर्व मीमांसा – कर्मकांड और यज्ञ की महत्ता।
वेदांत (उत्तर मीमांसा) – उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों पर आधारित – अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत आदि में विभाजन।
5. आगम और तंत्र ग्रंथ
विशेषतः शैव, वैष्णव और शाक्त परंपराओं में पूजन, ध्यान, मंदिर निर्माण, मूर्ति स्थापना आदि के लिए आगम और तंत्र ग्रंथों का महत्व है।
6. भक्ति साहित्य (प्रादेशिक भाषाओं में)
हिंदू धर्म के विभिन्न संतों और भक्तों ने सरल भाषा में अद्वितीय भक्ति रचनाएँ कीं:
हिंदू धर्म की विशेषता इसकी ग्रंथ-संपदा में निहित है – जहाँ वेदों की अमूर्त दिव्यता है, वहीं पुराणों और महाकाव्यों में भक्तिभाव और नैतिकता की झलक। यह समृद्ध साहित्य धर्म, दर्शन, आचरण, पूजा-पद्धति और मोक्ष तक के सभी आयामों को छूता है।
जब भी हम किसी व्यक्ति को “चुगली करने वाला” कहना चाहते हैं, तो मजाक में या तंज में हम अकसर कहते हैं, “कहीं तुम नारद मुनि तो नहीं?” या “नारद मत बनो”। यह संवाद आम हो चुका है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिसे हम उपहास में लेते हैं, वह असल में एक महान ऋषि और देवताओं के प्रमुख दूत हैं, देवर्षि नारद?
नारद मुनि थे विश्व के पहले पत्रकार थे। ऋषि नारद को ‘देवों के संवादवाहक’ के रूप में जाना जाता है। वे तीनों लोकों में स्वतंत्र रूप से यात्रा करते थे, स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल, और जो कुछ उन्होंने देखा, सुना, जाना, वह निर्भीक रूप से सही व्यक्ति तक पहुँचाया। यही तो पत्रकारिता का मूल है: सत्य जानना, तथ्य जुटाना, और उसे निष्पक्ष रूप से संबंधित पक्ष तक पहुँचाना।
वीसके फाउंडेशन जयपुर द्वारा नारद मुनि जयंती पर पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।
नारद मुनि ना केवल देवताओं को घटनाओं की जानकारी देते थे, बल्कि कई बार उन्होंने प्रभावशाली नीतिगत निर्णयों का मार्गदर्शन भी किया, जैसे:
प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु के कथा में नारद ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने गर्भ में ही प्रह्लाद को विष्णु-भक्ति का बीज दिया।
रामायण में नारद के संवादों के माध्यम से भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्रीराम के रूप में अवतार लिया।
महाभारत में भी उन्होंने कई बार धर्म के मार्ग पर संकेत देकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह धारणा कि नारद लड़वाने का काम करते थे बहुत सतही और गलत है। उन्होंने जो कहा वह सूचना थी गुप्तचरी नहीं। उनका उद्देश्य हमेशा था कि:
सत्य सामने आए
धर्म की रक्षा हो
देवताओं या मानवों को चेतावनी मिल सके
उदाहरण के लिए जब उन्होंने किसी असुर की योजनाओं की जानकारी देवताओं को दी वह चुगली नहीं थी बल्कि सुरक्षा चेतावनी थी। लेकिन आज की आम भाषा में नारद मत बनो कहना एक तरह से धार्मिक और सांस्कृतिक अवमानना है।
नारद को भड़काने वाला मान लेना भी गलत है। वे ऐसी जानकारी साझा करते थे जो पहले से चल रही समस्याओं को सतह पर लाती थी। ध्यान दीजिए, सत्य को उजागर करना उकसाना नहीं होता बल्कि जिम्मेदार चेतावनी देना होता है।
हमने अनजाने में नारद जैसे ऋषि को मजाक और अपमान का पात्र बना दिया है। नारद मत बनो, हर जगह टांग अड़ाते हो, सबको भड़काते हो, ये वाक्य अब आम हैं, परन्तु ये एक पूजनीय देवता का अनादर हैं। हमें यह समझना होगा कि जो व्यक्ति ज्ञान, संगीत, और संवाद के प्रतीक हैं, उन्हें अपमानजनक रूप में चित्रित करना ना केवल अनुचित, बल्कि सांस्कृतिक रूप से नुकसानदेह भी है।
देवर्षि नारद ने ही नारद भक्ति सूत्र जैसे ग्रंथ की रचना की जो आज भी भक्ति मार्ग का मूल आधार है।
टीवी धारावाहिकों और फिल्मों ने भी नारद जी को कई बार हास्य पात्र की तरह प्रस्तुत किया। हाथ में वीणा, नारायण नारायण, कहकर आते और सबको उलझा कर चले जाते। यह चित्रण आधा-सच और गलत-संदेश देता है। वास्तव में नारद जी वेद, उपनिषद, भक्ति-योग के प्रचारक थे और उन्होंने नारद भक्ति सूत्र जैसे ग्रंथ की रचना की, जो आज भी भक्ति मार्ग का मूल आधार है।
अब समय आ गया है कि हम नारद जी को पहले संवाददाता, पहले संचार विशेषज्ञ, और धार्मिक चेतना के अग्रदूत के रूप में सम्मान दें। नारद मत बनो जैसे वाक्यों को हम अपनी भाषा से हटाएँ और उनके स्थान पर सत्य का संचार करो जैसे विचारों को प्रोत्साहित करें।
क्योंकि नारद न सिर्फ़ देवता थे, वो सत्यों के सेतु थे, जो हमें धर्म, विवेक और चेतना की ओर ले जाते हैं। उनका सम्मान करना हमारी संस्कृति की गरिमा है।
आदि शंकराचार्य केवल एक संत नहीं थे, वे समय से परे एक चेतना थे। उनका जन्म भले ही एक विशिष्ट कालखंड में हुआ, लेकिन उनका कार्य और विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तब था।
भारत, एक ऐसा देश जो असंख्य भाषाओं, मतों और परंपराओं में विभाजित है, वहां उन्होंने अद्वैत वेदांत की दृष्टि से सबको जोड़ा। उन्होंने बताया कि सत्य केवल एक है, और उसके अनुभव का मार्ग आत्म-ज्ञान है। उनके लिए धर्म कोई ढांचा नहीं था, वह एक यात्रा थी, भीतर की यात्रा।
जब वे कहते हैं, “ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या”, तो वे संसार को नकार नहीं रहे थे। वे केवल यह समझा रहे थे कि इस संसार में जो भी बदलता है, वह स्थायी नहीं है। जो भीतर है, वह ही शाश्वत है। यह एक विचार मात्र नहीं, अनुभव की बात है।
उन्होंने न केवल ग्रंथों की व्याख्या की, बल्कि चार मठों की स्थापना करके इस ज्ञान को भारत के चारों कोनों में फैलाया, उत्तर में ज्योतिर्मठ (उत्तरकाशी), दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारका। यह केवल धार्मिक संस्थाएं नहीं थीं, ये आत्मबोध की चैतन्य शृंखलाएं थीं।
केरल के कालडी में आदिशंकराचार्य का जन्मस्थान
शंकराचार्य का जीवन केवल साधना या ज्ञान तक सीमित नहीं था, उन्होंने तर्क से, संवाद से, यात्रा से, और सबसे बड़ी बात, करुणा से काम लिया। उन्होंने कभी किसी पर अपना मत नहीं थोपा, बल्कि प्रश्न करने और अनुभव से जानने को प्रेरित किया।
आज जब हम धर्म को अक्सर बाहरी प्रतीकों, वाद-विवाद या राजनीतिक खांचों में देखते हैं, तब शंकराचार्य का दर्शन हमें भीतर लौटने का निमंत्रण देता है।
वे हमें यह याद दिलाते हैं कि धर्म, राष्ट्र और जीवन, इन सबकी गहराई में एकता है। और जब हम भीतर से उस एकता को अनुभव कर लेते हैं, तब कोई बाहरी विभाजन टिक नहीं सकता।
#आदिगुरु_शंकराचार्य द्वारा पूरे भारत का भ्रमण कर आक्रमणग्रस्त मन्दिरों में विग्रह स्थापना कर लोगों में धार्मिक आस्था का संचार किया। यह धार्मिक आस्था कर्मकाण्डपरक न होकर हृदय को शुद्व व निर्मल करने का साधन रूप थी जो कठिन परिस्थितियों से झुजते समाज की आवश्यकता है। pic.twitter.com/tZqAYmgaCK
यह लेख केवल जानकारी नहीं, एक स्मरण है। कि हमारी पहचान हमारे विचारों से नहीं, हमारे अनुभव से बनती है। और अनुभव का स्रोत, आत्मा है। जो शंकराचार्य के शब्दों में, न कोई है, न नहीं है, वह केवल है। सत्। चित्। आनंद।
“अपने भीतर झाँको। वहाँ न कोई संप्रदाय है, न मतभेद — बस एक ही सत्य है, जो सबमें समान रूप से विद्यमान है।” – स्मरण शंकराचार्य का
अक्षय तृतीया, जिसे “अक्ती” या “आखा तीज़” भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ होता है — ‘जिसका कभी क्षय न हो।’ यानी इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य, दान, या पूजा-पाठ कभी व्यर्थ नहीं जाता। यह दिन सौभाग्य, समृद्धि और स्थायी फल प्रदान करने वाला माना जाता है।
धार्मिक महत्त्व:
त्रेतायुग की शुरुआत: मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग का आरंभ हुआ था, जब भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था।
गंगा अवतरण: इसी दिन गंगा धरती पर अवतरित हुई थी, जो मोक्षदायिनी मानी जाती है।
महाभारत और अक्षय पात्र: वनवास के समय पांडवों को भगवान सूर्य ने अक्षय पात्र दिया था, जो कभी खाली नहीं होता था। यह वरदान इसी दिन प्राप्त हुआ था।
कुबेर और लक्ष्मी पूजा: इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की विशेष पूजा का विधान है।
पूजा विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर के मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
तांबे या चांदी के पात्र में जल, अक्षत (चावल), तुलसी, फूल और तुलसी पत्र अर्पित करें।
पंचामृत से अभिषेक कर दीप-धूप दिखाएं।
शुद्ध घी का दीपक जलाएं और “ॐ श्री लक्ष्म्यै नमः” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
गरीबों को अन्न, वस्त्र, जल, स्वर्ण, छाता, पंखा, और शक्कर का दान करें।
पीपल के वृक्ष की पूजा करना भी शुभ माना जाता है।
क्या करें और क्या न करें:
क्या करें: सोना, चांदी, जमीन, वाहन, या नया व्यापार खरीदना शुभ माना जाता है।
क्या न करें: क्रोध, कटु भाषा, निंदा और अपवित्रता से दूर रहें।
आज के संदर्भ में:
अक्षय तृतीया न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण पर्व बन चुका है। इस दिन सोना खरीदना अब परंपरा का हिस्सा बन गया है, क्योंकि इसे समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। विवाह के लिए भी यह अबूझ मुहूर्त होता है — यानी बिना किसी ज्योतिषीय सलाह के भी विवाह किए जा सकते हैं।
चार धाम यात्रा (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) भारत की सबसे पवित्र यात्राओं में से एक है। यह यात्रा हर साल लाखों श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है, और 2025 में भी बड़ी संख्या में लोग उत्तराखंड की इन पावन स्थलों की ओर प्रस्थान करेंगे। यदि आप राजस्थान के बहरोड़ से यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए संपूर्ण मार्गदर्शिका है।
1. यात्रा कैसे करें?
रेलवे द्वारा यात्रा:
निकटतम रेलवे स्टेशन: हरिद्वार जंक्शन और ऋषिकेश
बहरोड़ से विकल्प:
आप अलवर जंक्शन या जयपुर जंक्शन से हरिद्वार या ऋषिकेश तक ट्रेन ले सकते हैं।
वहाँ से बस या टैक्सी से आगे की यात्रा कर सकते हैं।
बस से यात्रा:
सरकारी बस सेवा: RSRTC और UTC की बसें हरिद्वार व ऋषिकेश के लिए उपलब्ध हैं।
प्राइवेट बसें: कई निजी कंपनियाँ राजस्थान से सीधी बस सेवा देती हैं।
स्थानीय बसें: हरिद्वार/ऋषिकेश से चार धाम के लिए लोकल बसें और शेयर टैक्सी चलती हैं।
कार द्वारा यात्रा:
स्वयं ड्राइव:
बहरोड़ से हरिद्वार तक लगभग 400 किलोमीटर का रास्ता है, जो 7-8 घंटे में तय किया जा सकता है।
इसके बाद:
यमुनोत्री – 220 किमी
गंगोत्री – 290 किमी
केदारनाथ – 250 किमी
बद्रीनाथ – 320 किमी
हायर की गई कार: अनुभवी ड्राइवर के साथ गाड़ी किराए पर लेना सुरक्षित होता है।
2. मौसम की जानकारी
मई-जून: सबसे उपयुक्त समय, तापमान 10°C से 20°C के बीच।
जुलाई-सितंबर: भारी बारिश और भूस्खलन का खतरा रहता है, यात्रा से बचें।
अक्टूबर-नवंबर: ठंड का आगमन, कभी-कभी बर्फबारी। लेकिन मौसम साफ होता है।
3. सुरक्षा और सावधानियाँ
स्वास्थ्य:
यात्रा से पहले चेकअप करवा लें।
दवाइयाँ और फर्स्ट एड किट साथ रखें।
ऊँचाई की समस्या:
धीरे-धीरे ऊँचाई पर जाएं, पानी खूब पिएं, ज्यादा मेहनत न करें।
भू-स्खलन से सतर्कता:
बारिश के मौसम में यात्रा न करें।
मौसम की जानकारी लेते रहें।
आपातकालीन संपर्क:
स्थानीय पुलिस, अस्पताल और प्रशासन के नंबर अपने पास रखें।
4. जरूरी सुझाव
पंजीकरण:
उत्तराखंड सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर यात्रा का पंजीकरण अनिवार्य है।
आवास:
यात्रा सीजन में होटल व धर्मशालाएं भर जाती हैं, पहले से बुक करें।
जरूरी सामान:
गर्म कपड़े, रेनकोट, मजबूत जूते, टॉर्च, दवाइयाँ, पहचान पत्र साथ रखें।
आचार-विचार:
मंदिरों में अनुशासन बनाए रखें, स्थानीय परंपराओं का सम्मान करें।
चार धाम यात्रा केवल धार्मिक नहीं, एक आत्मिक और मानसिक अनुभव है। अगर आप पहले से योजना बनाकर चलते हैं तो यह यात्रा आपको जीवनभर याद रहेगी। उत्तराखंड की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए सतर्क रहना अत्यंत आवश्यक है।
हिन्दू नववर्ष भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। यह दिन न केवल नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि इसे विक्रम संवत, शक संवत और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।
हिन्दू नववर्ष 2025 की तिथि
वर्ष 2025 में हिन्दू नववर्ष की शुरुआत 30 मार्च (रविवार) को होगी। इस दिन से विक्रम संवत 2082 और शक संवत 1947 का शुभारंभ होगा।
हिन्दू नववर्ष का महत्व
सृष्टि की रचना का दिन: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी।
रामराज्याभिषेक: कई ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
विक्रम संवत की शुरुआत:राजा विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रम संवत की स्थापना की थी, जो आज भी भारत में प्रचलित है।
नया फसल चक्र: इस समय रबी की फसल कटने लगती है, जिसे किसान नए वर्ष के आगमन के रूप में देखते हैं।
हिन्दू नववर्ष के क्षेत्रीय नाम
भारत के विभिन्न हिस्सों में हिन्दू नववर्ष को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है:
गुड़ी पड़वा – महाराष्ट्र
उगादी – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक
चेटी चंड – सिंधी समुदाय
विषु – केरल
पोइला बैशाख – बंगाल
बैसाखी – पंजाब
पुथांडु – तमिलनाडु
कैसे मनाया जाता है हिन्दू नववर्ष?
पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन – घरों और मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। गुड़ी या ध्वज फहराना – महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा पर गुड़ी फहराने की परंपरा है। विशेष पकवान बनाना – इस दिन घरों में मीठे और पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। सकारात्मक संकल्प लेना – लोग नए साल की नई शुरुआत के लिए संकल्प लेते हैं।
हिन्दू नववर्ष सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक है। यह नवचेतना और उल्लास का पर्व है, जो हमें न केवल अपनी जड़ों से जोड़ता है, बल्कि एक नए उत्साह और उमंग के साथ जीवन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी देता है।
आपको और आपके परिवार को हिन्दू नववर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं!
श्री परशुराम जी भगवान जन्मोत्सव कल 10 मई को बनाया जायेगा। राजस्थान के अग्रणी ब्राह्मण संगठन राजस्थान ब्राह्मण महासभा व उसकी विभिन्न जिला इकाइयां इस उपलक्ष में कार्यकर्म और शोभा यात्राओं का आयोजन कर रही है जो की आने वाले दिनों तक चलेंगे।
श्री परशुराम जन्मोत्सव के उपलक्ष में श्री परशुराम भवन राजस्थान ब्राह्मण महासभा सेक्टर 4 विद्याधर नगर से श्री परशुराम शोभायात्रा 12 मई रविवार को 5:00 बजे सायँ प्रस्थान करेगी। ओम प्रकाश चोटिया, राज्य उपाध्यक्ष ने सभी बंधु इष्ट मित्र महिलाएं मातृशक्ति व सभी से 5:00 बजे श्री परशुराम भवन परिसर में पधारने और शोभा यात्रा को सफल बनाने का निवेदन किया। यही दिन में 9:00 बजे से रक्तदान शिविर है, रक्तदान शिविर को भी सफल बनाएं ऐसा उन्होंने कहा।
राजस्थान ब्राह्मण महासभा इकाई डीडवाना के तत्वाधान में भगवान परशुराम जन्म दिवस तीन दिवसीय कार्यक्रम का आज डीडवाना कुचामन जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हिमांशु जी शर्मा को कार्यक्रम का निमंत्रण दिया। इकाई अध्यक्ष अशोक जी गोड़, इकाई महामन्त्री कैलाश सिवाल, युवा साथी बजरंग शर्मा बालिया और ब्रह्मदेव शर्मा प्रदेश वरिष्ट उपाध्यक्ष राजस्थान ब्राह्मण महासभा।
दिनांक 10 /5/2024 को प्रातः 9 बजे गुलाब विहार श्योपुर रोड प्रताप नगर पर भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं । इकाई ने सभी से आग्रह किया की वे अपने परिवार जनों इष्टमित्रों सहीत भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं। समाज जनों की उपस्थिति समाज को गौरव प्रदान करेगी, लोग अपने इष्टमित्रों एवं परिवार सहित भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम में उपस्थित होकर अक्षय पुण्य को प्राप्त करें।
राजस्थान ब्राह्मण महासभा जैसलमेर ने भी विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन रखा है। 10 मई को सुंदरकांड का आयोजन, स्थान – श्री परशुराम धाम, समय – शाम 7 बजे, प्रभारी – श्री रामचन्द्र गोपा व श्री आर सी व्यास। 11 मई को मंहेदी प्रतियोगिता रखी गई है। स्थान – गीता आश्रम, समय- प्रातः 11 बजे, प्रभारी – श्रीमती वंदना जगाणी श्रीमती पुष्पा गज्जा व श्रीमती ज्योत्स्ना कल्ला। 11 मई को ही वाहन रैली है। स्थान – श्री परशुराम चौक से श्री परशुराम धाम, समय- शाम 4 बजे, प्रभारी – श्री जयंत व्यास श्री ग्वालदास छंगाणी श्री महेश शर्मा। 12 मई को फिर भव्य शोभा यात्रा है। समय- प्रातः 9 बजे से, स्थान – गीता आश्रम से श्री परशुराम धाम, प्रभारी – समस्त विप्र बंधु कमलेश छंगाणी जैसलमेर प्रदेश उपाध्यक्ष राजस्थान ब्राह्मण महासभा।
भगवान परशुराम जन्मोत्सव शोभायात्रा हेतु परशुराम वाटिका में भोजशाला की तैयारी।
वही चुरू में कल दिनाक 10 तारीख को भगवान श्री परशुराम जन्मोतस्व पर सुबह 8 बजे परशुराम नगर स्थित भगवान परशुराम जी की पुजा अर्चना कि जावेगी। शाम को 4 बजे राम मन्दीर चुरू से शोभा यात्रा निकाली जावेगी जो गड चोराहे सें परशुराम भवन में पुजा करके बद्रीनारायण मन्दीर तक जावेगी। महासभा ने सब सनातन प्रेमियो सें निवेदन किया है कि कार्यक्रमो में ज्यादा सें ज्यादा पहुंचकर शोभा बढावे।
हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लसबेला इलाके के हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह हिंदू देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर पिछले तीन दशकों में काफी लोकप्रिय हुआ है और पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केंद्र बन गया है। कहते है के देवी सती के शरीर के 50 हिस्से हुए थे जिसमे की सिर यहां हिंगलाज में है। वही हाथ पाकिस्तान के कब्जे वाले आजाद कश्मीर के श्रद्धा पीठ में।
हिंगलाज माता मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है, जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है, बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है।
हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी माना जाता है जो अपने सभी भक्तों के लिए मनोकामना पूर्ण करती है।
स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने मंदिर को “नानी का मंदिर” कहते है। हर साल माता के मंदिर तक एक यात्रा और फिर मेला भरता है।
मंदिर के पास 4 दिन तक रहने वाले भक्तो के लिए बलूचिस्तान की सरकार तंबू, खाना पीना और सुरक्षा उपलब्ध कराती है। मेले में आने वाले सैकड़ों भक्त तो अपने घर से ही माता का मंदिर तक के कई सौ किलोमीटर के सफर को तप्ती रेत में नंगे पांव चल के पूरा करतें है।
मंदिर के पास के ही एक प्राकृतिक भाप के स्रोत वाले पहाड़ पे लोग चढ़ के उसकी गरम मिट्टी से मूरत बनाते है और उसे अपने चेहरे पे लगाते है।
फिलहाल विभिन्न स्रोतों के अनुसार पाकिस्तान में करीब 40 लाख हिंदू ही बचे है। इस यात्रा में करीब 1 लाख हिंदू भाग लेंगे। बलूचिस्तान की आम जनता भारत को पसंद करती है और पाकिस्तान की सेना और सरकार के भेदभाव की वजह से उनके खिलाफ है।
वार्ड नंबर 15 में चल रही बाबा खाटू श्याम की कथा में पहुंचकर भागवत आचार्य पंडित अरुण त्रिवेदी एवं खाटू नरेश जन सेवा समिति के अध्यक्ष प्रभु दयाल जी गुप्ता का अभिनंदन कर, भक्तो ने कथा श्रवण किया एवं बाबा श्याम के चरणों में अरदास की।
इस अवसर पर वाइस चेयरमैन राजेश शर्मा, वार्ड पार्षद नीरज शर्मा, विप्र कार्मिक संगठन अध्यक्ष गोपाल जगदीश गुरु, राजस्थान पुस्तकालय संघ उपाध्यक्ष रामावतार बोहरा, खाटू नरेश जन सेवा समिति अध्यक्ष प्रभु दयाल गुप्ता राधाकृष्ण शर्मा सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महावीर जयंती पर आज नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भव्य भारत मंडपम में भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण महोत्सव का उद्घाटन करेंगे। यह महोत्सव भगवान महावीर स्वामी के 2623 वें जन्म कल्याणक समारोह के उपलक्ष में आयोजित किया जा रहा है।इस अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक सौ रुपए का स्मारक सिक्का भी जारी किया जाएगा। समारोह में केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, केंद्रीय कानून और संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी आदि विशिष्ठजन भी उपस्थित रहेंगे।
आचार्य प्रज्ञा सागर मुनि के सानिध्य में नई दिल्ली के चांदनी चौक स्थित श्रीलाल महावीर मंदिर में आयोजित प्रेस वार्ता में समारोह की तैयारियों की जानकारी देते हुए भगवान महावीर मेमोरियल समिति के अध्यक्ष के. एल. जैन पटावरी ने बताया कि समारोह में श्वेत पिच्छाचार्य श्रीविध्यानंद जी मुनिराज के आज्ञानुवर्ती राष्ट्र संत परंपताचार्य प्रज्ञ सागर मुनिराज, आचार्य सम्राट पूज्य डॉ शिवमुनि के आज्ञानुवर्ती श्रमण संघीय उपाध्याय प्रवर पूज्य रविंद्र मुनि,आचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर महाराज के आज्ञानुवर्ती साध्वी सुलक्षणा तथा आचार्य पूज्य महाश्रमण की विदुषी शिष्या अणिमा श्री का प्रेरक सानिध्य भी रहेगा।
उन्होंने बताया कि इस समारोह को लेकर पूरे जैन समाज में विपुल उत्साह है। देश के विभिन्न प्रांतों से प्रतिनिधिगण इस कार्यक्रम में भाग लेने दिल्ली पहुंच रहे हैंl पटावरी ने कहा कि वर्तमान समय में पूरी दुनियां विश्व युद्ध, अनैतिकता, भूखमरी, पर्यावरण प्रदूषण आदि अनेक समस्याओं से जूझ रही है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर के सिद्धांत अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत का दर्शन इन सभी समस्याओं से निजात पाने में अत्यन्त प्रभावी हो सकते है। भगवान महावीर 2550 वे निर्वाण महोत्सव समिति के अध्यक्ष गजराज गंगवाल ने कहा कि भगवान महावीर के दर्शन से ही विश्व युद्ध जैसी विभीषिकाओं से बच सकता है।
प्रेस वार्ता में जैन तेरापंथ संघ (जेएसटी) के अध्यक्ष सुखराज सेठिया, सत्य भूषण जैन, लक्ष्मी पथ बोथरा एवं डॉ कमल जैन सेठिया आदि भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि यह वर्ष भगवान महावीर का 2550 वा निर्वाण वर्ष है| इस निर्वाण महोत्सव के माध्यम से भगवान महावीर के शाश्वत संदेशों का सार्वभौमिक प्रचार प्रसार जन-जन के लिए कल्याणकारी हो सकेगा। समारोह में दिगंबर आचार्य प्रज्ञा सागर मुनि, उपाध्याय रविन्द्र मुनि, साध्वी सुलक्षणा और आचार्य महाश्रमण की सुशिष्या साध्वीश्री अणिमाश्रीजी अपने उदबोधन से भगवान महावीर के संदेशों की सारगर्भित व्याख्या करेंगे।
झालावाड़: राजस्थान ब्राह्मण महासभा जिला के अध्यक्ष श्री राकेश शर्मा ने जानकारी दी है कि आगामी 10 मई को भगवान परशुराम जी की जयंती जन्मोत्सव को विधिवत सुचारु रूप से मनाने के लिये और आवश्यक उत्तरदायित्व निभाने के लिए दिनांक 22 अप्रेल 2024 वार सोमवार को ब्राह्मण समाज के सभी समाज बंधुओं की एक बैठक रखी गई है।
उन्होंने बताया कि यह पर्व सभी समाज बंधुओ के सक्रिय सहयोग व साथ से ही मनाया जाता हैं। बैठक बालजी की छतरी पर शाम 5.30 बजे रखी गई है। हर बार की तरह इस वर्ष भी जयंती उत्सव धूम धाम से विशालकाय मनाया जायेगा।
श्री राम नवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है, जो अप्रैल-मई में आता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था।
श्री राम नवमी का पर्व पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान राम के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है।
रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं, लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने ऋषि वशिष्ठ के निर्देश पर पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को खीर खाने को दी, जिसके बाद तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं।
ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने श्रीराम को, कैकयी ने श्रीभरत को और सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों श्रीलक्ष्मण और श्रीशत्रुघ्न को जन्म दिया। भगवान श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों का संहार करने के लिए हुआ था।
इस साल 2024 में रामनवमी 17 अप्रैल को धूमधाम और श्रद्धा से बनाई जायेगी।
500 साल के इंतजार के बाद राम जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद के स्थान पर श्री राम लला का भव्य मंदिर श्री राम मंदिर, श्री अयोध्या में बनकर तैयार हुआ है। जिसमें राम जी के 5 साल की उम्र की भव्य मूर्ति आखिरकार प्राण प्रतिष्ठा के साथ 22 जनवरी को स्थापित हो गई। नई मूर्ति का नाम बालक राम रखा गया है व साथ ही रामलला विराजमान जो इतने सालों से राम जी की मूरत में टेंट में रहे और केस लड़ने के भी एक पात्र रहे, उन्हें भी नए राम मंदिर में नई राममूर्ति के पास ही पूर्ण परिवार के साथ स्थापित किया गया है।
प्राण प्रतिष्ठा के कुछ दिन बाद ही खबर आई है कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ASI, जो की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कर रही थी उसने यह सूचना अब वहां के हाई कोर्ट को दी है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे आखिरकार एक हिंदू मंदिर ही था जिसको तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद की स्थापना की गई। यह तर्क भी दिया जा रहा है की मस्जिद के नाम में ही हिंदू नाम छुपा हुआ है, ज्ञान वापी। आज दैनिक भास्कर में कई फोटो भी छपी हैं जो की आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया एएसआई ने वहां के हाई कोर्ट में सोपी है। इन फोटों में हिंदू स्तंभ, मूर्ति, घंटी, कमल आदि दिखाई दे रहे हैं जो की मस्जिद के नीचे और अंदर प्लास्टर करके दबे हुए हैं। इसे हिंदू पक्ष का यह दवा बेहद मजबूत हो गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक शिव मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी वह अब वापस से यहां पर एक शिव मंदिर की स्थापना होनी चाहिए।
पर इस मामले में और कृष्ण जन्म स्थान पर भी वापस से हिंदू मंदिर बनाने में एक बड़ा अड़चन है प्लेसेज आफ वरशिप एक्ट 1991, जो कि अयोध्या में कार सेवा की वजह से उसे समय के तत्कालीन सरकार ने बनाया था। इस कानून में कहा गया है कि राम मंदिर को छोड़कर देश के किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति बिल्कुल वैसे ही रखी जाएगी जो की आजादी के समय 1947 में थी। यानी कि जहां मंदिर है वहां मंदिर ही रहेगा, जहां मस्जिद है वहा मस्जिद रहेगी। वहा किसी प्रकार के भी दावे पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। पर यह प्लेस आफ वरशिप एक्ट कानून भी इस समय सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष के द्वारा चैलेंज किया हुआ है और इस पर फैसला आना बाकी है।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने प्लेस आफ वरशिप एक्ट को गैरकानूनी या असंवैधानिक घोषित कर दिया तो फिर राम जन्मभूमि के जैसे ही ज्ञानवापी “मस्जिद” और श्री कृष्ण जन्म भूमि के पावन स्थलों पर हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट होते हुए अगर हिंदू पक्ष जाता और जीतता है तो वहां पर भी भव्य शिव मंदिर और श्री कृष्ण मंदिर बनने का रास्ता साफ हो जाएगा। जो की कानूनी भी है, संवैधानिक भी, धार्मिक भी और एक हिंदू बहुसंख्यक राष्ट्र के आत्मसमान के लिए जरूरी भी।
जयपुर, 25 जनवरी, 2024। अयोध्या स्थित प्रभु श्री रामलला के दर्शनों के लिए जयपुर समेत प्रदेशभर के 970 बुजुर्ग तीर्थयात्रियों का पहला दल गुरुवार शाम को खातीपुरा रेलवे स्टेशन से रवाना हो गया। देवस्थान मंत्री श्री जोराराम कुमावत ने हरी झंडी दिखाकर ट्रेन को रवाना किया। इससे पहले मंत्री श्री कुमावत ने रामभक्तों को अयोध्या की निशुल्क यात्रा कराने के लिए इस ट्रेन की व्यवस्था के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल को धन्यवाद दिया।
श्री कुमावत ने कहा कि पांच सौ सालों के लंबे इंतजार और आंदोलन के बाद कोर्ट का फैसला मंदिर निर्माण के पक्ष में आया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ढाई साल के अल्प समय में ही राम मदिर की प्राण प्रतिष्ठा संभव हो सकी। यह हम सबके लिए गौरव की बात है। देवस्थान विभाग के अधिकारियों का धन्यवाद करते हुए मंत्री ने कहा कि उन्होंने समय पर यात्रियों के अयोध्या यात्रा की सुचारू व्यवस्था की। उन्होंने अधिकारियों को यात्रियों की सुविधा का पूरा ध्यान रखने के निर्देश भी प्रदान किए।
श्री कुमावत ने बताया कि 5 तारीख को जोधपुर से एक दूसरी ट्रेन भी रवाना होगी जो मेड़ता सिटी होती हुई अयोध्या जाएगी।उन्होंने सभी यात्रियों को बधाई और शुभकामना देते उनकी सफल और निर्विघ्न यात्रा की कामना की।देवस्थान मंत्री ने ट्रेन में व्यवस्थाओं का अवलोकन किया और तीर्थयात्रियों से बात भी की। देवस्थान विभाग की ओर से वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा योजना 2023 के तहत अयोध्या सर्किट योजना के लिए आवेदन करने वाले बुजुर्गाे को यह पहला अवसर मिला है। पांच दिवसीय इस यात्रा में बुजुर्गों को अयोध्या के रामलला के दर्शनों के साथ ही हरिद्वार और ़ऋषिकेश तीर्थस्थलों का भी भ्रमण करवाया जाएगा। ट्रेन में एक मंदिर भी बनाया गया है जिसमें बुजुर्ग कीर्तन और पूजा पाठ कर सकेंगे।
श्रद्धेय मंच, सभी संत एवं ऋषिगण, यहां उपस्थित और विश्व के कोने-कोने में हम सबके साथ जुड़े हुए सभी रामभक्त, आप सबको प्रणाम, सबको राम-राम। आज हमारे राम आ गए हैं! सदियों की प्रतीक्षा के बाद हमारे राम आ गए हैं। सदियों का अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान, त्याग और तपस्या के बाद हमारे प्रभु राम आ गये हैं। इस शुभ घड़ी की आप सभी को, समस्त देशवासियों को, बहुत-बहुत बधाई। मैं अभी गर्भगृह में ईश्वरीय चेतना का साक्षी बनकर आपके सामने उपस्थित हुआ हूँ। कितना कुछ कहने को है… लेकिन कंठ अवरुद्ध है। मेरा शरीर अभी भी स्पंदित है, चित्त अभी भी उस पल में लीन है। हमारे रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे। हमारे रामलला अब इस दिव्य मंदिर में रहेंगे। मेरा पक्का विश्वास है, अपार श्रद्धा है कि जो घटित हुआ है इसकी अनुभूति, देश के, विश्व के, कोने-कोने में रामभक्तों को हो रही होगी। ये क्षण अलौकिक है। ये पल पवित्रतम है। ये माहौल, ये वातावरण, ये ऊर्जा, ये घड़ी… प्रभु श्रीराम का हम सब पर आशीर्वाद है। 22 जनवरी, 2024 का ये सूरज एक अद्भुत आभा लेकर आया है। 22 जनवरी, 2024, ये कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं। ये एक नए कालचक्र का उद्गम है। राम मंदिर के भूमिपूजन के बाद से प्रतिदिन पूरे देश में उमंग और उत्साह बढ़ता ही जा रहा था। निर्माण कार्य देख, देशवासियों में हर दिन एक नया विश्वास पैदा हो रहा था। आज हमें सदियों के उस धैर्य की धरोहर मिली है, आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेता हुआ राष्ट्र, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। आज से हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। और ये कितनी बड़ी रामकृपा है कि हम इस पल को जी रहे हैं, इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। आज दिन-दिशाएँ… दिग-दिगंत… सब दिव्यता से परिपूर्ण हैं। ये समय, सामान्य समय नहीं है। ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रहीं अमिट स्मृति रेखाएँ हैं।
साथियों, हम सब जानते हैं कि जहां राम का काम होता है, वहाँ पवनपुत्र हनुमान अवश्य विराजमान होते हैं। इसलिए, मैं रामभक्त हनुमान और हनुमानगढ़ी को भी प्रणाम करता हूँ। मैं माता जानकी, लक्ष्मण जी, भरत-शत्रुघ्न, सबको नमन करता हूं। मैं पावन अयोध्या पुरी और पावन सरयू को भी प्रणाम करता हूँ। मैं इस पल दैवीय अनुभव कर रहा हूँ कि जिनके आशीर्वाद से ये महान कार्य पूरा हुआ है… वे दिव्य आत्माएँ, वे दैवीय विभूतियाँ भी इस समय हमारे आस-पास उपस्थित हैं। मैं इन सभी दिव्य चेतनाओं को भी कृतज्ञता पूर्वक नमन करता हूँ। मैं आज प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, हमारे त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गयी होगी कि हम इतनी सदियों तक ये कार्य कर नहीं पाए। आज वो कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है, प्रभु राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियों, त्रेता में राम आगमन पर तुलसीदास जी ने लिखा है- प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित वियोग बिपति सब नासी। अर्थात्, प्रभु का आगमन देखकर ही सब अयोध्यावासी, समग्र देशवासी हर्ष से भर गए। लंबे वियोग से जो आपत्ति आई थी, उसका अंत हो गया। उस कालखंड में तो वो वियोग केवल 14 वर्षों का था, तब भी इतना असह्य था। इस युग में तो अयोध्या और देशवासियों ने सैकड़ों वर्षों का वियोग सहा है। हमारी कई-कई पीढ़ियों ने वियोग सहा है। भारत के तो संविधान में, उसकी पहली प्रति में, भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत की न्यायपालिका का, जिसने न्याय की लाज रख ली। न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्याय बद्ध तरीके से ही बना। साथियों,आज गाँव-गाँव में एक साथ कीर्तन, संकीर्तन हो रहे हैं। आज मंदिरों में उत्सव हो रहे हैं, स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं। पूरा देश आज दीवाली मना रहा है। आज शाम घर-घर राम ज्योति प्रज्वलित करने की तैयारी है। कल मैं श्रीराम के आशीर्वाद से धनुषकोडि में रामसेतु के आरंभ बिंदु अरिचल मुनाई पर था। जिस घड़ी प्रभु राम समुद्र पार करने निकले थे वो एक पल था जिसने कालचक्र को बदला था। उस भावमय पल को महसूस करने का मेरा ये विनम्र प्रयास था। वहां पर मैंने पुष्प वंदना की। वहां मेरे भीतर एक विश्वास जगा कि जैसे उस समय कालचक्र बदला था उसी तरह अब कालचक्र फिर बदलेगा और शुभ दिशा में बढ़ेगा। अपने 11 दिन के व्रत-अनुष्ठान के दौरान मैंने उन स्थानों का चरण स्पर्श करने का प्रयास किया, जहां प्रभु राम के चरण पड़े थे। चाहे वो नासिक का पंचवटी धाम हो, केरला का पवित्र त्रिप्रायर मंदिर हो, आंध्र प्रदेश में लेपाक्षी हो, श्रीरंगम में रंगनाथ स्वामी मंदिर हो, रामेश्वरम में श्री रामनाथस्वामी मंदिर हो, या फिर धनुषकोडि… मेरा सौभाग्य है कि इसी पुनीत पवित्र भाव के साथ मुझे सागर से सरयू तक की यात्रा का अवसर मिला। सागर से सरयू तक, हर जगह राम नाम का वही उत्सव भाव छाया हुआ है। प्रभु राम तो भारत की आत्मा के कण-कण से जुड़े हुए हैं। राम, भारतवासियों के अंतर्मन में विराजे हुए हैं। हम भारत में कहीं भी, किसी की अंतरात्मा को छुएंगे तो इस एकत्व की अनुभूति होगी, और यही भाव सब जगह मिलेगा। इससे उत्कृष्ट, इससे अधिक, देश को समायोजित करने वाला सूत्र और क्या हो सकता है?
मेरे प्यारे देशवासियों! मुझे देश के कोने-कोने में अलग-अलग भाषाओं में रामायण सुनने का अवसर मिला है, लेकिन विशेषकर पिछले 11 दिनों में रामायण अलग-अलग भाषा में, अलग-अलग राज्यों से मुझे विशेष रूप से सुनने का सौभाग्य मिला। राम को परिभाषित करते हुये ऋषियों ने कहा है- रमन्ते यस्मिन् इति रामः॥ अर्थात्, जिसमें रम जाया जाए, वही राम है। राम लोक की स्मृतियों में, पर्व से लेकर परम्पराओं में, सर्वत्र समाये हुए हैं। हर युग में लोगों ने राम को जिया है। हर युग में लोगों ने अपने-अपने शब्दों में, अपनी-अपनी तरह से राम को अभिव्यक्त किया है। और ये रामरस, जीवन प्रवाह की तरह निरंतर बहता रहता है। प्राचीन काल से भारत के हर कोने के लोग रामरस का आचमन करते रहे हैं। रामकथा असीम है, रामायण भी अनंत हैं। राम के आदर्श, राम के मूल्य, राम की शिक्षाएं, सब जगह एक समान हैं।
प्रिय देशवासियों, आज इस ऐतिहासिक समय में देश उन व्यक्तित्वों को भी याद कर रहा है, जिनके कार्यों और समर्पण की वजह से आज हम ये शुभ दिन देख रहे हैं। राम के इस काम में कितने ही लोगों ने त्याग और तपस्या की पराकाष्ठा करके दिखाई है। उन अनगिनत रामभक्तों के, उन अनगिनत कारसेवकों के और उन अनगिनत संत महात्माओं के हम सब ऋणी हैं। साथियों,आज का ये अवसर उत्सव का क्षण तो है ही, लेकिन इसके साथ ही ये क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता के बोध का क्षण भी है। हमारे लिए ये अवसर सिर्फ विजय का नहीं, विनय का भी है। दुनिया का इतिहास साक्षी है कि कई राष्ट्र अपने ही इतिहास में उलझ जाते हैं। ऐसे देशों ने जब भी अपने इतिहास की उलझी हुई गांठों को खोलने का प्रयास किया, उन्हें सफलता पाने में बहुत कठिनाई आई। बल्कि कई बार तो पहले से ज्यादा मुश्किल परिस्थितियां बन गईं। लेकिन हमारे देश ने इतिहास की इस गांठ को जिस गंभीरता और भावुकता के साथ खोला है, वो ये बताती है कि हमारा भविष्य हमारे अतीत से बहुत सुंदर होने जा रहा है। वो भी एक समय था, जब कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। ऐसे लोग भारत के सामाजिक भाव की पवित्रता को नहीं जान पाए। रामलला के इस मंदिर का निर्माण, भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है। हम देख रहे हैं, ये निर्माण किसी आग को नहीं, बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है। राम मंदिर समाज के हर वर्ग को एक उज्जवल भविष्य के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा लेकर आया है। मैं आज उन लोगों से आह्वान करूंगा… आईये, आप महसूस कीजिए, अपनी सोच पर पुनर्विचार कीजिए।
राम आग नहीं है, राम ऊर्जा हैं। राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं।
प्रधानमंत्री मोदी
साथियों, आज जिस तरह राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के इस आयोजन से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है, उसमें राम की सर्वव्यापकता के दर्शन हो रहे हैं। जैसा उत्सव भारत में है, वैसा ही अनेकों देशों में है। आज अयोध्या का ये उत्सव रामायण की उन वैश्विक परम्पराओं का भी उत्सव बना है। रामलला की ये प्रतिष्ठा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार की भी प्रतिष्ठा है।साथियों, आज अयोध्या में, केवल श्रीराम के विग्रह रूप की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है। ये श्रीराम के रूप में साक्षात् भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट विश्वास की भी प्राण प्रतिष्ठा है। ये साक्षात् मानवीय मूल्यों और सर्वोच्च आदर्शों की भी प्राण प्रतिष्ठा है। इन मूल्यों की, इन आदर्शों की आवश्यकता आज सम्पूर्ण विश्व को है। सर्वे भवन्तु सुखिन: ये संकल्प हम सदियों से दोहराते आए हैं। आज उसी संकल्प को राममंदिर के रूप में साक्षात् आकार मिला है। ये मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं। राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं। राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं। राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं। राम प्रवाह हैं, राम प्रभाव हैं। राम नेति भी हैं। राम नीति भी हैं। राम नित्यता भी हैं। राम निरंतरता भी हैं। राम विभु हैं, विशद हैं। राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं। और इसलिए, जब राम की प्रतिष्ठा होती है, तो उसका प्रभाव वर्षों या शताब्दियों तक ही नहीं होता। उसका प्रभाव हजारों वर्षों के लिए होता है। महर्षि वाल्मीकि ने कहा है- राज्यम् दश सहस्राणि प्राप्य वर्षाणि राघवः। अर्थात, राम दस हजार वर्षों के लिए राज्य पर प्रतिष्ठित हुए। यानी हजारों वर्षों के लिए रामराज्य स्थापित हुआ। जब त्रेता में राम आए थे, तब हजारों वर्षों के लिए रामराज्य की स्थापना हुई थी। हजारों वर्षों तक राम विश्व पथप्रदर्शन करते रहे थे। और इसलिए मेरे प्यारे देशवासियों, आज अयोध्या भूमि हम सभी से, प्रत्येक रामभक्त से, प्रत्येक भारतीय से कुछ सवाल कर रही है। श्रीराम का भव्य मंदिर तो बन गया…अब आगे क्या? सदियों का इंतजार तो खत्म हो गया…अब आगे क्या? आज के इस अवसर पर जो दैव, जो दैवीय आत्माएं हमें आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित हुई हैं, हमें देख रही हैं, उन्हें क्या हम ऐसे ही विदा करेंगे? नहीं, कदापि नहीं। आज मैं पूरे पवित्र मन से महसूस कर रहा हूं कि कालचक्र बदल रहा है। ये सुखद संयोग है कि हमारी पीढ़ी को एक कालजयी पथ के शिल्पकार के रूप में चुना गया है। हज़ार वर्ष बाद की पीढ़ी, राष्ट्र निर्माण के हमारे आज के कार्यों को याद करेगी। इसलिए मैं कहता हूं- यही समय है, सही समय है। हमें आज से, इस पवित्र समय से, अगले एक हजार साल के भारत की नींव रखनी है। मंदिर निर्माण से आगे बढ़कर अब हम सभी देशवासी, यहीं इस पल से समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत के निर्माण की सौगंध लेते हैं। राम के विचार, ‘मानस के साथ ही जनमानस’ में भी हों, यही राष्ट्र निर्माण की सीढ़ी है।साथियों,आज के युग की मांग है कि हमें अपने अंतःकरण को विस्तार देना होगा। हमारी चेतना का विस्तार… देव से देश तक, राम से राष्ट्र तक होना चाहिए। हनुमान जी की भक्ति, हनुमान जी की सेवा, हनुमान जी का समर्पण, ये ऐसे गुण हैं जिन्हें हमें बाहर नहीं खोजना पड़ता। प्रत्येक भारतीय में भक्ति, सेवा और समर्पण के ये भाव, समर्थ-सक्षम,भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेंगे। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार ! दूर-सुदूर जंगल में कुटिया में जीवन गुजारने वाली मेरी आदिवासी मां शबरी का ध्यान आते ही, अप्रतिम विश्वास जागृत होता है। मां शबरी तो कबसे कहती थीं- राम आएंगे। प्रत्येक भारतीय में जन्मा यही विश्वास, समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगा। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार! हम सब जानते हैं कि निषादराज की मित्रता, सभी बंधनों से परे है। निषादराज का राम के प्रति सम्मोहन, प्रभु राम का निषादराज के लिए अपनापन कितना मौलिक है। सब अपने हैं, सभी समान हैं। प्रत्येक भारतीय में अपनत्व की, बंधुत्व की ये भावना, समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगी। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार!
साथियों, आज देश में निराशा के लिए रत्तीभर भी स्थान नहीं है। मैं तो बहुत सामान्य हूं, मैं तो बहुत छोटा हूं, अगर कोई ये सोचता है, तो उसे गिलहरी के योगदान को याद करना चाहिए। गिलहरी का स्मरण ही हमें हमारी इस हिचक को दूर करेगा, हमें सिखाएगा कि छोटे-बड़े हर प्रयास की अपनी ताकत होती है, अपना योगदान होता है। और सबके प्रयास की यही भावना, समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार बनेगी। और यही तो है देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार!
साथियों, लंकापति रावण, प्रकांड ज्ञानी थे, अपार शक्ति के धनी थे। लेकिन जटायु जी की मूल्य निष्ठा देखिए, वे महाबली रावण से भिड़ गए। उन्हें भी पता था कि वो रावण को परास्त नहीं कर पाएंगे। लेकिन फिर भी उन्होंने रावण को चुनौती दी। कर्तव्य की यही पराकाष्ठा समर्थ-सक्षम, भव्य-दिव्य भारत का आधार है। और यही तो है, देव से देश और राम से राष्ट्र की चेतना का विस्तार। आइए, हम संकल्प लें कि राष्ट्र निर्माण के लिए हम अपने जीवन का पल-पल लगा देंगे। रामकाज से राष्ट्रकाज, समय का पल-पल, शरीर का कण-कण, राम समर्पण को राष्ट्र समर्पण के ध्येय से जोड़ देंगे। मेरे देशवासियों, प्रभु श्रीराम की हमारी पूजा, विशेष होनी चाहिए। ये पूजा, स्व से ऊपर उठकर समष्टि के लिए होनी चाहिए। ये पूजा, अहम से उठकर वयम के लिए होनी चाहिए। प्रभु को जो भोग चढ़ेगा, वो विकसित भारत के लिए हमारे परिश्रम की पराकाष्ठा का प्रसाद भी होगा। हमें नित्य पराक्रम, पुरुषार्थ, समर्पण का प्रसाद प्रभु राम को चढ़ाना होगा। इनसे नित्य प्रभु राम की पूजा करनी होगी, तब हम भारत को वैभवशाली और विकसित बना पाएंगे।
मेरे प्यारे देशवासियों, ये भारत के विकास का अमृतकाल है। आज भारत युवा शक्ति की पूंजी से भरा हुआ है, ऊर्जा से भरा हुआ है। ऐसी सकारात्मक परिस्थितियां, फिर ना जाने कितने समय बाद बनेंगी। हमें अब चूकना नहीं है, हमें अब बैठना नहीं है। मैं अपने देश के युवाओं से कहूंगा। आपके सामने हजारों वर्षों की परंपरा की प्रेरणा है। आप भारत की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं…जो चांद पर तिरंगा लहरा रही है, जो 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करके, सूर्य के पास जाकर मिशन आदित्य को सफल बना रही है, जो आसमान में तेजस… सागर में विक्रांत…का परचम लहरा रही है। अपनी विरासत पर गर्व करते हुए आपको भारत का नव प्रभात लिखना है। परंपरा की पवित्रता और आधुनिकता की अनंतता, दोनों ही पथ पर चलते हुए भारत, समृद्धि के लक्ष्य तक पहुंचेगा।
मेरे साथियों, आने वाला समय अब सफलता का है। आने वाला समय अब सिद्धि का है। ये भव्य राम मंदिर साक्षी बनेगा- भारत के उत्कर्ष का, भारत के उदय का, ये भव्य राम मंदिर साक्षी बनेगा- भव्य भारत के अभ्युदय का, विकसित भारत का! ये मंदिर सिखाता है कि अगर लक्ष्य, सत्य प्रमाणित हो, अगर लक्ष्य, सामूहिकता और संगठित शक्ति से जन्मा हो, तब उस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव नहीं है। ये भारत का समय है और भारत अब आगे बढ़ने वाला है। शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद हम यहां पहुंचे हैं। हम सब ने इस युग का, इस कालखंड का इंतजार किया है। अब हम रुकेंगे नहीं। हम विकास की ऊंचाई पर जाकर ही रहेंगे। इसी भाव के साथ रामलला के चरणों में प्रणाम करते हुए आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं। सभी संतों के चरणों में मेरे प्रणाम।
अयोध्या में जन्म भूमि स्थित राम- मन्दिर में आज 18 जनवरी 2024 को दिन में 12:30 बजे के बाद राममूर्ति का प्रवेश हुआ। दोपहर 1:20 बजे यजमान द्वारा प्रधानसंकल्प होने पर वेदमन्त्रों की ध्वनि से वातावरण मंगलमय हुआ। मूर्ति के जलाधिवास तक के कार्य गुरुवार को संपन्न हुए।
अब कल दिनांक 19 जनवरी शुक्रवार को प्रातः 9 बजे अरणिमन्थन से अग्नि प्रकट होगी। उसके पूर्व गणपति आदि स्थापित देवताओं का पूजन, द्वारपालों द्वारा सभी शाखाओं का वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुण्डपूजन, पञ्चभूसंस्कार होगा। अरणिमन्थन द्वारा प्रगट हुई अग्नि की कुण्ड में स्थापना, ग्रहस्थापन, असंख्यात रुद्रपीठस्थापन, प्रधानदेवतास्थापन, राजाराम – भद्र – श्रीरामयन्त्र – बीठदेवता – अङ्गदेवता – आवरणदेवता – महापूजा, वारुणमण्डल, योगिनीमण्डलस्थापन, क्षेत्रपालमण्डलस्थापन, ग्रहहोम, स्थाप्यदेवहोम, प्रासाद वास्तुश्शान्ति, धान्याधिवास सायंकालिक पूजन एवं आरती होगी।
जयपुर, 13 जनवरी। मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा शनिवार को जयपुर में गोकाष्ठ लोहड़ी महोत्सव में शामिल हुए। उन्होंने लोहड़ी को प्रज्वलित कर प्रदेश की समृद्धि एवं उन्नति की कामना की। उन्होंने सभी लोगों को लोहड़ी की बधाई देते हुए कहा कि राजस्थान के पंजाबी समुदाय के बीच आकर इस हर्षोल्लास के पर्व को मनाना सौभाग्य की बात है। किसान की फसल पकने पर मनाया जाने वाला लोहड़ी का त्योहार सुख एवं समृद्धि का उत्सव है। सभी आयु वर्ग के लोग एक जैसे उत्साह के साथ इस त्योहार को मनाते हैं, इससे सामाजिक भाईचारा, परिवार की एकजुटता और पुरानी पीढ़ी द्वारा नई पीढ़ी में संस्कारों का संचार प्रबल होता है।
उन्होंने कहा कि पंजाबी समाज सेवा एवं धर्म के कार्यों में अग्रणी रहता है। इस समाज के लोगों द्वारा गरीब-निर्धन परिवारों को चिन्हित कर उनके लिए उचित व्यवस्थाएं की जाती है, जो कि अनुकरणीय है। इस अवसर पर विधायक श्री गोपाल शर्मा एवं श्री बालमुकुन्द आचार्य तथा श्री रवि नय्यर, श्री चन्द्र मोहन बटवाड़ा सहित पंजाबी समाज के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या धाम में मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 11 दिवसीय विशेष अनुष्ठान शुरू कर दिया है। “ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। जैसा हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है, हमें ईश्वर के यज्ञ के लिए, आराधना के लिए, स्वयं में भी दैवीय चेतना जागृत करनी होती है। इसके लिए शास्त्रों में व्रत और कठोर नियम बताए गए हैं, जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा से पहले पालन करना होता है। इसलिए, आध्यात्मिक यात्रा की कुछ तपस्वी आत्माओं और महापुरुषों से मुझे जो मार्गदर्शन मिला है…उन्होंने जो यम-नियम सुझाए हैं, उसके अनुसार मैं आज से 11 दिन का विशेष अनुष्ठान आरंभ कर रहा हूं।”
एक भावनात्मक संदेश में प्रधानमंत्री ने प्राण प्रतिष्ठा से पहले पूरे देश में राम भक्ति की भावना का उल्लेख किया। इस क्षण को ईश्वर का आशीर्वाद बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, मैं भावुक हूँ,भाव-विह्वल हूँ! मैं पहली बार जीवन में इस तरह के मनोभाव से गुजर रहा हूँ, मैं एक अलग ही भाव-भक्ति की अनुभूति कर रहा हूं। मेरे अंतर्मन की ये भाव-यात्रा, मेरे लिए अभिव्यक्ति का नहीं, अनुभूति का अवसर है। चाहते हुए भी मैं इसकी गहनता, व्यापकता और तीव्रता को शब्दों में बांध नहीं पा रहा हूं। आप भी मेरी स्थिति भली भाँति समझ सकते हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर के लिए आभार व्यक्त किया, ”मुझे उस सपने के पूरा होने के समय उपस्थित होने का सौभाग्य मिला है, जिस स्वप्न को अनेकों पीढ़ियों ने वर्षों तक एक संकल्प की तरह अपने हृदय में जिया, मुझे उसकी सिद्धि के समय उपस्थित होने का सौभाग्य मिला है। प्रभु ने मुझे सभी भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करने का निमित्त बनाया है। ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।”
“मैं भावुक हूँ, भाव-विह्वल हूँ! मैं पहली बार जीवन में इस तरह के मनोभाव से गुजर रहा हूँ, प्रभु ने मुझे सभी भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करने का निमित्त बनाया है। ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।”
प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री ने इस पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों और परमात्मा का आशीर्वाद मांगा और खुशी व्यक्त की कि वह नासिक धाम- पंचवटी से अनुष्ठान शुरू करेंगे जहां प्रभु श्रीराम ने काफी समय बिताया था। उन्होंने आज स्वामी विवेकानन्द एवं माता जीजाबाई की जयंती के सुखद संयोग का भी उल्लेख किया और राष्ट्र चेतना के दो दिग्गजों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री को इस पल में अपनी मां की याद आई जो हमेशा सीता-राम के प्रति भक्ति से भरी रहती थीं।
भगवान राम के भक्तों के बलिदान को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “शरीर के रूप में, तो मैं उस पवित्र पल का साक्षी बनूंगा ही, लेकिन मेरे मन में, मेरे हृदय के हर स्पंदन में, 140 करोड़ भारतीय मेरे साथ होंगे। आप मेरे साथ होंगे…हर रामभक्त मेरे साथ होगा। और वो चैतन्य पल, हम सबकी सांझी अनुभूति होगी। मैं अपने साथ राम मंदिर के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले अनगिनत व्यक्तित्वों की प्रेरणा लेकर जाऊंगा”।
प्रधानमंत्री ने देश को अपने साथ जुड़ने के लिए कहा और लोगों का आशीर्वाद मांगा तथा उनसे अपने भाव उनके साथ साझा करने को कहा। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम सब इस सत्य को जानते हैं कि ईश्वर निराकार है। लेकिन ईश्वर, साकार रूप में भी हमारी आध्यात्मिक यात्रा को बल देते हैं। जनता-जनार्दन में ईश्वर का रूप होता है, ये मैंने साक्षात देखा है, महसूस किया है। लेकिन जब ईश्वर रूपी वही जनता शब्दों में अपनी भावनाएं प्रकट करती है, आशीर्वाद देती है, तो मुझमें भी नई ऊर्जा का संचार होता है। आज, मुझे आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है।”