श्रुति ग्रंथ: हिंदू धर्म का दिव्य आधार

हिंदू धर्म के विशाल और गहन साहित्यिक संग्रह में श्रुति ग्रंथों का स्थान सर्वोपरि है। ‘श्रुति’ का अर्थ है – “जो सुना गया है”। ये ग्रंथ ईश्वर द्वारा ऋषियों को श्रवण द्वारा प्राप्त हुए माने जाते हैं। ये न केवल हिंदू धर्म के सबसे पुराने और मूल ग्रंथ हैं, बल्कि वेदांत और भारतीय दर्शन की नींव भी इन्हीं ग्रंथों पर टिकी हुई है।


श्रुति ग्रंथों की विशेषता

श्रुति ग्रंथों को मानव-रचित नहीं माना जाता, बल्कि यह विश्वास है कि ऋषियों ने ध्यान और तपस्या के माध्यम से इन दिव्य वचनों को ‘श्रवण’ द्वारा प्राप्त किया और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से सुरक्षित रखा। यही कारण है कि इन्हें अनादि और अपौरुषेय (जिसका कोई मानव रचयिता न हो) कहा गया है।


श्रुति ग्रंथों का मुख्य भाग – चार वेद

हिंदू धर्म के श्रुति ग्रंथों में मुख्यतः चार वेद सम्मिलित हैं। इन वेदों को ‘ज्ञान का मूल स्रोत’ माना जाता है।

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1. ऋग्वेद

  • सबसे प्राचीन वेद (लगभग 1500–1200 ई.पू.)
  • इसमें 1,028 सूक्त हैं जो विभिन्न देवताओं की स्तुति में रचे गए हैं – जैसे अग्नि, इंद्र, वरुण, सोम।
  • यह वेद ज्ञान और मंत्र का स्रोत है।

2. सामवेद

  • इसमें ऋग्वेद के मंत्रों को संगीतबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • यज्ञों और अनुष्ठानों में गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह।
  • भारतीय शास्त्रीय संगीत की जड़ें भी इसी वेद से जुड़ी हैं।

3. यजुर्वेद

  • यह वेद कर्मकांडों और यज्ञ विधियों का विवरण देता है।
  • दो शाखाएं:
    • कृष्ण यजुर्वेद – मंत्र और गद्य एकसाथ।
    • शुक्ल यजुर्वेद – मंत्र और गद्य पृथक।

4. अथर्ववेद

  • घरेलू जीवन, चिकित्सा, जड़ी-बूटियाँ, तंत्र-मंत्र, और आयुर्वेद से संबंधित सूक्त।
  • यह वेद आम जनजीवन के साथ सीधा संवाद स्थापित करता है।

हर वेद के चार भाग

हर वेद में चार स्तर होते हैं, जो क्रमशः कर्म से ज्ञान की ओर बढ़ते हैं:

  1. संहिता – मूल मंत्रों का संग्रह।
  2. ब्राह्मण – यज्ञ और कर्मकांड की विधि।
  3. आरण्यक – वनवासी तपस्वियों द्वारा चिंतन और दर्शन।
  4. उपनिषद – तत्वज्ञान, आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष पर गहन विमर्श।
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उपनिषद: श्रुति का दार्शनिक पक्ष

उपनिषदों को ‘वेदांत’ भी कहा जाता है क्योंकि वे वेदों के अंतिम भाग हैं। इनका विषय है:

  • आत्मा क्या है?
  • ब्रह्म (परमात्मा) क्या है?
  • मोक्ष कैसे प्राप्त करें?

कुछ प्रमुख उपनिषद:

  • ईशावास्य उपनिषद
  • केन उपनिषद
  • छांदोग्य उपनिषद
  • बृहदारण्यक उपनिषद
  • कठ उपनिषद

उपनिषदों की संख्या 108 से अधिक मानी जाती है, लेकिन 11 को प्रमुख और प्रामाणिक माना जाता है।


श्रुति बनाम स्मृति

  • श्रुति: दिव्य, शाश्वत, अपरिवर्तनीय (जैसे वेद, उपनिषद)।
  • स्मृति: मानवीय अनुभव और परंपरा पर आधारित (जैसे मनुस्मृति, महाभारत)।

श्रुति का स्थान हिंदू धर्म में सर्वोपरि है – यह मूल है, बाकी सब व्याख्या।


श्रुति की मौखिक परंपरा: एक अद्भुत चमत्कार

वेदों को हजारों वर्षों तक मौखिक रूप से याद रखा गया, जिसमें उच्चारण की शुद्धता और छंद की संरचना अक्षुण्ण रही। यह कार्य विशेष पाठ विधियों द्वारा हुआ:

  • पदपाठ
  • क्रमपाठ
  • जटा पाठ
  • घन पाठ
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यह अद्भुत स्मृति परंपरा विश्व की सबसे पुरानी और सबसे सटीक मौखिक परंपरा मानी जाती है।


निष्कर्ष

श्रुति ग्रंथ केवल धार्मिक पुस्तकें नहीं हैं – वे भारतीय संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, संगीत और जीवन दर्शन का मूल स्रोत हैं। इन ग्रंथों की दिव्यता और गहराई आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी हजारों वर्ष पूर्व थी।

श्रुति हमें सिखाती है कि ध्यान, ज्ञान और आत्मा के माध्यम से ईश्वर से सीधा संबंध स्थापित किया जा सकता है। यह केवल ग्रंथों का अध्ययन नहीं, बल्कि जीवन की साधना है।

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